..और जब कोई निकलने को कहे तो उन्हें जीभ निकालकर चिढाना..
है ना मजेदार !!
मस्त..
बहुत मजेदार..पानी बिखराती..और मम्मा परेशान होती तब और मजा आता..हा हा!!
yahi to bachpan haihttp://sanjaykuamr.blogspot.com/
पाखी, जब हम तेरी उम्र के थे तब बकेट में नहीं जोहड में नहाते थे।फिर किसकी मजाल कि हमें बाहर निकाल दे।
वाह वाह
mumma ko tang karna hi to sabse jayada majedaar hota hai...hai na paakhi...khub masti karo!
MAST , LAGE RAHO AUR KHUSH RAHO....SEEMA SACHDEV
kya bat hai, nice
पाखी की हर शरारत प्यारी होती है..आशीष.
वैसे चिढाया किसे जा रहा है ममा को या पापा को.
पोर्टब्लेयर में पाखी की शरारतें बढ़ गई हैं...मजेदार !!
पाखी की शरारतें भी पाखी की तरह स्वीट होती हैं...बधाई.
@ समीर अंकल जी,सही बात कही आपने..हा..हा..हा..
@ नीरज अंकल,अब तो जिस तरह से पानी ख़त्म हो रहा है, उसके बारे में भी सोचना पड़ता है ना.
@ शुभम आंटी ,पर रोज नहीं, कभी-कभी !
एकदम मस्त....गर्मियों में तो यही अच्छा लगता है
@ Rashmi Aunty,हा..हा..हा...ये क्यों बताऊँ. वैसे आप सोचो ना.
@ DR. Brajesh Uncle,पोर्टब्लेयर में ही क्यों अंकल जी, मैं तो कानपुर में भी खूब शरारतें करती थी.
बहुत खूब पाखी बेटू..मस्ती करो और जमकर पढाई भी करो.
सुंदर!
यही तो शरारत के दिन हैं पाखी..लाजवाब चित्र.
नन्हीं सी पाखी की नटखट शरारतें..मजेदार.
बचपन में हम भी तालाबों में खूब नहाते थे पाखी. याद दिला दी आपने उन दिनों की.
पाखी की बातों और शरारतों में एक अद्भुत प्यार है, जो लोगों को अपनी ओर स्वत: आकर्षित कर लेती है. और हाँ, फोटो तो मस्त लगाई है....बधाई.
अच्छा तो ये बात है पाखी शरारत भी करती है
अरे! वाह..... बेटा कितना अच्छा लग रहा है....
एक टिप्पणी भेजें
27 टिप्पणियां:
मस्त..
बहुत मजेदार..पानी बिखराती..और मम्मा परेशान होती तब और मजा आता..हा हा!!
yahi to bachpan hai
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
पाखी, जब हम तेरी उम्र के थे तब बकेट में नहीं जोहड में नहाते थे।फिर किसकी मजाल कि हमें बाहर निकाल दे।
वाह वाह
mumma ko tang karna hi to sabse jayada majedaar hota hai...
hai na paakhi...khub masti karo!
MAST , LAGE RAHO AUR KHUSH RAHO....SEEMA SACHDEV
kya bat hai, nice
पाखी की हर शरारत प्यारी होती है..आशीष.
वैसे चिढाया किसे जा रहा है ममा को या पापा को.
पोर्टब्लेयर में पाखी की शरारतें बढ़ गई हैं...मजेदार !!
पाखी की शरारतें भी पाखी की तरह स्वीट होती हैं...बधाई.
@ समीर अंकल जी,
सही बात कही आपने..हा..हा..हा..
@ नीरज अंकल,
अब तो जिस तरह से पानी ख़त्म हो रहा है, उसके बारे में भी सोचना पड़ता है ना.
@ शुभम आंटी ,
पर रोज नहीं, कभी-कभी !
एकदम मस्त....गर्मियों में तो यही अच्छा लगता है
@ Rashmi Aunty,
हा..हा..हा...ये क्यों बताऊँ. वैसे आप सोचो ना.
@ DR. Brajesh Uncle,
पोर्टब्लेयर में ही क्यों अंकल जी, मैं तो कानपुर में भी खूब शरारतें करती थी.
बहुत खूब पाखी बेटू..मस्ती करो और जमकर पढाई भी करो.
सुंदर!
यही तो शरारत के दिन हैं पाखी..लाजवाब चित्र.
नन्हीं सी पाखी की नटखट शरारतें..मजेदार.
बचपन में हम भी तालाबों में खूब नहाते थे पाखी. याद दिला दी आपने उन दिनों की.
पाखी की बातों और शरारतों में एक अद्भुत प्यार है, जो लोगों को अपनी ओर स्वत: आकर्षित कर लेती है. और हाँ, फोटो तो मस्त लगाई है....बधाई.
अच्छा तो ये बात है पाखी शरारत भी करती है
अरे! वाह..... बेटा कितना अच्छा लग रहा है....
यही तो शरारत के दिन हैं पाखी..लाजवाब चित्र.
एक टिप्पणी भेजें