It is mother of all the creatures.
Nature always gives us the hope,
To climb up in life with any kind of rope.
It is mother of all the creatures.
Nature always gives us the hope,
To climb up in life with any kind of rope.
वाराणसी के गंगा घाटों की खूबसूरती देखते बनती है। हल्की ठंड के बीच देर शाम को शरीर को सिहराती हवाएँ और इनके बीच गंगा में बोटिंग बेहद सुकून देती है।
खिड़किया घाट, राजघाट से लेकर असि घाट तक अर्द्धचंद्राकार आकार में फैले 88 घाटों का विस्तृत नजारा देखते बनता है। शाम को घाटों पर विशेषकर दशाश्वमेध घाट पर होने वाली गंगा आरती इसे और भी दिव्यता प्रदान करती है।
वाराणसी या बनारस (जिसे काशी के नाम से भी जाना जाता है) दुनिया के सबसे पुराने जीवित शहरों में से एक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, काशी नगरी की स्थापना भगवान शिव ने लगभग 5,000 वर्ष पूर्व की थी। वाराणसी अपनी प्राचीन विरासत के साथ-साथ अध्यात्म, साहित्य, संस्कृति, कला और उत्सवों के लिए भी जाना जाता है। ज्ञान, दर्शन, संस्कृति, देवताओं के प्रति समर्पण, भारतीय कला और शिल्प यहाँ सदियों से फले-फूले हैं।
वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी, श्री काशी विश्वनाथ मन्दिर एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। वाराणसी के गंगा घाटों की खूबसूरती देखते बनती है। बनारस की शाम मशहूर है तो यहाँ की सुबह-ए-बनारस भी उतनी ही प्रसिद्ध है। गंगा घाटों पर बोटिंग बेहद सुकून देती है। नमो घाट (खिड़किया घाट), राजघाट से लेकर असि घाट तक अर्द्धचंद्राकार आकार में फैले 88 घाटों का विस्तृत नजारा देखते बनता है। शाम को घाटों पर होने वाली गंगा आरती इसे और भी दिव्यता प्रदान करती है।
वाराणसी को प्रायः ‘मंदिरों का शहर’, ‘भारत की धार्मिक राजधानी’, ‘भगवान शिव की नगरी’, ‘दीपों का शहर’, ‘ज्ञान नगरी’ आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है। बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इस नगर को पवित्र माना जाता है। तभी तो प्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं, “बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों (लीजेन्ड्स) से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।”
एक-खूबसूरती...! एक-ताजगी..! एक-सपना..! एक-सचाई..! एक-कल्पना..! एक-अहसास..! एक-आस्था..! एक-विश्वास..!
यही है एक अच्छे साल की शुरुआत।
नव वर्ष-2023 का हार्दिक अभिनन्दन। नया साल आप सभी के जीवन में नया उल्लास और ढेरों खुशियाँ लेकर आए।🌹
Happy Birthday to my cute Sister Apurva . On your special day I wish you a lot of fun, smiles and joy. May each minute of your life be filled with happiness and may this birthday be just perfect for you.
प्रकाश व ख़ुशियों के महापर्व दीपावली की आप एवं आपके समस्त परिवार को हार्दिक शुभकामनाएँ।
यह दीपोत्सव आप सभी के जीवन में सुख, समृद्धि एवं सौभाग्य लाएँ।
काशी में हर वर्ष आयोजित होने वाला नाटी इमली का 'भरत मिलाप' जग प्रसिद्ध है। रंगमंचीय दृष्टि से देखें तो नाटीइमली के भरत मिलाप को विश्व की संक्षिप्त नाट्य प्रस्तुति कह सकते हैं। लीला तो दोपहर 2.30 बजे ही शुरू हो जाती है लेकिन मुख्य अंश मात्र पांच मिनट का होता है। नाटी इमली की विश्व प्रसिद्ध भरत मिलाप कुछ ही देर का होता है लेकिन इसको देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। 5 मिनट का यह मिलन लाखों लोगों को आह्लादित कर देता है।
479 वर्षों की परंपरा का निर्वहन करते हुए काशी के नाटी इमली में भरत मिलाप का लक्खा मेला (जिसमें लाखों लोग आते हों) सजा तो भक्तों का हुजूम उमड़ पड़ा। श्रद्धालुओं की बेशुमार भीड़ के बीच राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के मिलन की लीला संपन्न हुई। बारिश के बीच चारों भाइयों का मिलन देख कर श्रद्धालुओं ने जय श्रीसियाराम और हर-हर महादेव का उद्घोष किया।
विश्व प्रसिद्ध भरत मिलाप मेला शाम तीन बजे से प्रारम्भ होता है। अपरान्ह तीन बजे भगवान राम के आगमन का संदेश देने हनुमान जी चित्रकूट धूपचण्डी से अयोध्या बड़ा गणेश रवाना होते हैं। अपरान्ह 3.30 पर भगवान राम, माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ रथ पर सवार होते है। चित्रकूट से इस विशाल रथ को लाल साफा सिर पर और कमर में गमछा बांधे यादव बधुंओं की टोली सियावर रामचन्द्र की जय, हर हर महादेव के गगनभेदी उद्घोष के बीच उठाती है। यादव बन्धु चित्रकूट धूपचंडी से रथ लेकर नाटीइमली मैदान पर आते है। जहाँ, चित्रकूट रामलीला समिति द्वारा आयोजित इस भरत मिलाप की शुरुआत सूर्यास्त के पहले अपरान्ह 4.40 पर होती है। शाम 4:40 बजे मानस मंडली द्वारा भरत मिलाप की चौपाई '...परे भूमि नहिं उठत उठाए, बर करि कृपासिंधु उर लाए...' का गान शुरू होने से पहले ही भगवान श्रीराम और लक्ष्मण पुष्पक विमान से उतर कर जमीन पर दंडवत पड़े भरत और शत्रुघ्न की ओर दौड़ पड़े और उन्हें गले लगाते हैं। मान्यता है कि इस लीला में भगवान राम स्वयं अवतरित होते हैं।
परंपरानुसार काशी राजपरिवार के सदस्य कुंवर अनंत नारायण सिंह भरत मिलाप की लीला देखने के लिए हाथी पर सवार होकर पहुंचे और राजसी परंपरा का निर्वहन करते हुए हर वर्ष की तरह उन्होंने लीला के व्यवस्थापकों को सोने की गिन्नी दी।