आजकल अंडमान में खूब बारिश हो रही है. जब देखो तब बिजली कड़कने लगती है और बादल गरजने लगते हैं. कित्ता डर लगता है, बिजली की गडगडाहट सुनकर. पर इन सबके बीच छाता लेकर घूमने का मजा ही कुछ और है.
कभी बारिश आती है, तो कभी जाती है।
जब तेज हवा चलती है तो ऐसे लगता है कि मेरी छतरी तो गई. मेरे साथ-साथ पेड़-पौधे और ये गुलमोहर के फूल भी बारिश का मजा ले रहे हैं. अब देखिये, बारिश में भीगा-भीगा पोर्टब्लेयर भी कित्ता सुन्दर लगता है.
43 टिप्पणियां:
अले वाह, पाखी तो अंडमान में बारिश का जमकर लुत्फ़ ले रही हैं और हम लोग भीषण गर्मी में परेशान हैं.
पाखी का छाता और फूल भी बहुत प्यारे लगे..
बारिश में पाखी की शैतानियाँ..वाह-वाह !!
आज तो पाखी छाता लेकर खूब घूम रही है. लगता है धमाल व मस्ती के मूड में है.
लकी हो आप लोग..इधर तो गर्मी के मारे हाल बेहाल है.
पाखी, अंडमान के कुछ बादलों को कहकर इधर भी भिजवा दो..
बड़े प्यारे-प्यारे दृश्य हैं, पाखी, छाता, बादल, बारिश, फूल और पोर्टब्लेयर. ज्यादा मत भीगना नहीं तो जुकाम हो सकता है. प्यार सहित,
ये रंग-बिरंगी पाखी कहाँ थी अभी तक, लम्बे समय बाद दिखी और वो भी बारिश के साथ दिखी.
बारिश आई, बारिश आई
छतरी के दिन लाई
पाखी भीगे बारिश में
सबका मन खूब मोहाई
जब देखो तब बिजली कड़कने लगती है और बादल गरजने लगते हैं. कित्ता डर लगता है, बिजली की गडगडाहट सुनकर....हमें भी बहुत डर लगता है पाखी जी.
दिल्ली की गर्मी और उमस में पाखी को बारिस में भींगते देखकर जलन सी हो रही है , पर कोई बात नहीं , मुझे पता है की पाखी वहां से मानसून के बादल दिल्ली जरुर भेजेंगी , डाक विभाग से स्पीड पोस्ट कर दो बादलो को दिल्ली के लिए ,
पाखी, छाता, बादल, बारिश,गुलमोहर के फूल और पोर्टब्लेयर
पाखी की जय हो
पाखी, बारिश में पानी में कागज की नाव चलाने का मजा भी जरुर लेना.
आपके सभी चित्र पहले की भांति ही मनभावन व खूबसूरत...एक बार चित्रों के साथ-साथ अपनी प्यारी सी आवाज़ भी तो सुनाओ.
...bahut sundar !!!
BEAUTIFULL...!!
@ Dr. Brajesh Uncle,
बादलों से आपका सन्देश जरुर कह दूंगी..पर मेरी सुनेंगे तो ना.
@ Amit Chachu,
आपकी बात का ध्यान रखूंगी...
@ अभिलाषा आंटी,
रंग-बिरंगी पाखी बारिश लाने गई थी और अब आ गई...
@ माधव,
बादलों से आपका सन्देश जरुर कह दूंगी..पर मेरी सुनेंगे तो ना.
@ Rashmi Singh Aunty,
कागज की नाव पानी में चलाने में मुझे खूब मजा आता है. और जल्दी ही आप सबको अपनी आवाज़ भी सुनाउंगी ..
बादल तो कालीदास का कहा मान गए थो तभी तो उन्होंने मेघदूत लिखा , पाखी कहेगी तो बादल जरुर मानेनेगे
वाह पाखी बारीश में तो तुमने बहुत मज़े किए होंगे! बहुत ही सुन्दर और प्यारा चित्र!
वाह मेरी पाखी की फोटो तो बहुत बहुत ही प्यारी आयी हॆ..पर पाखी बारिश का आनन्द छतरी मे नही आता..अगली बार जब बारिश हो तो बिना छतरी के बारिश मे भीग कर देखो...पर हा भीगने के बाद गीले कपडे मत पहनना नही तो जुकाम हो जायेगा ऒर आपके इस आशू अकंल को जुकाम से बहुत डर लगता हॆ..
बड़ी सुन्दर तस्वीरें है बारिश की..मालूम है क्यूँ..?? क्यूँकि पाखी खड़ी है न बारिश में..:)
अंडमान का मौसम प्यारा,
मेरे मन को भाया!
इसमें पाखी झूम रही है,
मेरा मन मुस्काया!
bahut hi pyari photography hai
aur achhe shabdo ka chayan bhi
www.meriankahibate.blogspot.com
mujhe margdharsan ki avshyakta hai:)
पाखी, जरा थोडी सी बारिश इधर भी भेज देना। मरे जा रहे हैं।
Nice one dear enjoy the rain........
पाखी!
तुम्हारे इस नटखट मूड से मिलती जुलती एक कविता भेँज रहा हूँ। बचपन मेँ इसे हम लोग खूब गाते थे।
अम्मा जरा देख तो ऊपर
चले आ रहेँ हैँ बादल
गरज रहेँ हैँ बरस रहेँ हैँ
दीख रहा है जल ही जल
हवा चल रही क्या पुरवाई
भीग रही है डाली डाली
ऊपर काली घटा घिरी है
नीचे फैली हरियाली
भीग रहेँ हैँ खेत बाग वन
भीग रहेँ हैँ घर आँगन
बाहर निकलूँ मैँ भी भीगूँ
चाह रहा है मेरा मन
बताना कैसी लगी?
@ माधव,
..फिर तो जरुर कहूँगी बादलों से.
@ Ashu Uncle,
एक तरफ तो आप कहते हो बिना छतरी के घूमो, फिर तो जुकाम भी होगा, तबियत भी ख़राब होगी..
@ Samir Uncle ji,
आपकी बातें बड़ी प्यारी-प्यारी होती हैं, तभी तो हैं आप सबसे अच्छे वाले अंकल जी...
@ रवि अंकल जी,
आजकल वैसे भी आप सरस पायस और चर्चा में सबके चहरे पर मुस्कान ला रहे हैं..सुन्दर-सुन्दर बातें.
@ Shubh Uncle,
Main to apka blog ghum bhi ayi aur comment bhi kiya..
@ नीरज अंकल,
अभी भेजती हूँ. मिलते ही बताइयेगा..थोडा धीमे-धीमे जायेंगे पर जून तक तो पहुँच ही जायेंगे.
@ अशोक सिंह अंकल,
बहुत प्यारी..पढ़कर मजा आ गया..
बड़ी सुन्दर तस्वीरें है बारिश की.....
@ माधव,
मैंने यहाँ से बदल भिजवाये थे...मिले क्या. उनसे मैंने कहा था की माधव को जरुर भिगो देना.
खूबसूरत दृश्य..पाखी, जरा बच के नहीं तो जुकाम जी भी आ जायेंगे.
Beautifull...!!
थोडा बादल उत्तर प्रदेश में भी तो भिजवाइए पाखी जी. राजधानी वाले तो वैसे भी सब चीजें अपनी तरफ खींचने की कोशिश करते हैं.
..काश उसकी दो-चार छींटे इधर भी आ जाएँ.
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