ये देखिये मैं क्या लाई. ढेर सारे चित्र और इन चित्रों में मैं, मम्मी-पापा और भी बहुत कुछ. ये चित्र मुझे गिफ्ट किये हैं प्यारे से आशीष (आशु) अंकल ने. आशु अंकल को ढेर सारा प्यार व धन्यवाद. अब आप भी इन्हें देखिये और बताइए कि कैसे लग रहे हैं ये. हैं ना मजेदार !!
64 टिप्पणियां:
मस्त फोटो...
प्यार...
mujhe jo billi pyari lagi, wo kajrare ankho wali billi PAAKHI hai!!
pakhi ko mukesh uncle ka pyar!!
mujhe jo billi pyari lagi, wo kajrare ankho wali billi PAAKHI hai!!
pakhi ko mukesh uncle ka pyar!!
पाखी नहीं यह टिप्पणी उनके पापा-मम्मी के लिए है। जाहिर है कि पाखी नर्सरी में पढ़ती हैं तो पक्के तौर पर वह अभी इतनी बड़ी नहीं हुई हैं ब्लाग लिख सके। मैंने बालविज्ञान पत्रिका चकमक का 17 साल तक संपादन किया है। अपने उस अनुभव के आधार पर कहना चाहता हूं कि आप पाखी के बालमन को अभी से इस चकाचौंध में मत डालिए। उसकी प्रतिभा को जरूर बढ़ावा दीजिए। उसे वे मौके दीजिए जो स्वाभाविक हैं। जिस दिन वो खुद से ब्लाग लिखने लायक हो जाए उस दिन उसकी मदद करें,वो भी केवल तकनीकी रूप में। ऐसे ब्लाग हैं जिनमें बच्चे ही लिखते हैं,तकनीकी सहायता कोई और देता है।
आप भी जानते हैं पाखी के नाम से आप लोग लिख रहे हैं,टिप्पणियां कर रहे हैं। यह कितना बनावटी है क्या यह आपको महसूस नहीं होता। जो ब्लागर टिप्पणी करने आते हैं वे भी बनावटी टिप्पणी करके चले जाते हैं। क्या यह अच्छा नहीं होगा कि आप अपने वास्तविक नाम से ही लिखें। यानी कि आप वयस्क के नाते ही लिखें। हो सकता है आप ब्लाग किसी वैधानिक बाध्यता के कारण नहीं लिख सकते हों। तो भी आप अपनी एक कोई और पहचान बनाकर लिख सकते हैं। पर वयस्क रूप में।
इसमें कोई बुराई नहीं कि आप उस लेखन में पाखी का जिक्र करें। उसकी तस्वीरें दें उसके बारे में लिखें। मुझे लगता है वह एक वास्तविक अनुभव होगा। उससे और लोगों को भी फायदा होगा। वे उसके आधार पर अपने बच्चों की वे बातें नोट कर पाएंगे जिन पर आप ध्यान दे रहे हैं।
आप पाखी के रूप में मेरे ब्लाग पर आए आभारी हूं। पाखी को मेरी तरफ से बहुत बहुत प्यार और शुभकामनाएं दें।
पाखी नहीं यह टिप्पणी उनके पापा-मम्मी के लिए है। जाहिर है कि पाखी नर्सरी में पढ़ती हैं तो पक्के तौर पर वह अभी इतनी बड़ी नहीं हुई हैं ब्लाग लिख सके। मैंने बालविज्ञान पत्रिका चकमक का 17 साल तक संपादन किया है। अपने उस अनुभव के आधार पर कहना चाहता हूं कि आप पाखी के बालमन को अभी से इस चकाचौंध में मत डालिए। उसकी प्रतिभा को जरूर बढ़ावा दीजिए। उसे वे मौके दीजिए जो स्वाभाविक हैं। जिस दिन वो खुद से ब्लाग लिखने लायक हो जाए उस दिन उसकी मदद करें,वो भी केवल तकनीकी रूप में। ऐसे ब्लाग हैं जिनमें बच्चे ही लिखते हैं,तकनीकी सहायता कोई और देता है।
आप भी जानते हैं पाखी के नाम से आप लोग लिख रहे हैं,टिप्पणियां कर रहे हैं। यह कितना बनावटी है क्या यह आपको महसूस नहीं होता। जो ब्लागर टिप्पणी करने आते हैं वे भी बनावटी टिप्पणी करके चले जाते हैं। क्या यह अच्छा नहीं होगा कि आप अपने वास्तविक नाम से ही लिखें। यानी कि आप वयस्क के नाते ही लिखें। हो सकता है आप ब्लाग किसी वैधानिक बाध्यता के कारण नहीं लिख सकते हों। तो भी आप अपनी एक कोई और पहचान बनाकर लिख सकते हैं। पर वयस्क रूप में।
इसमें कोई बुराई नहीं कि आप उस लेखन में पाखी का जिक्र करें। उसकी तस्वीरें दें उसके बारे में लिखें। मुझे लगता है वह एक वास्तविक अनुभव होगा। उससे और लोगों को भी फायदा होगा। वे उसके आधार पर अपने बच्चों की वे बातें नोट कर पाएंगे जिन पर आप ध्यान दे रहे हैं।
आप पाखी के रूप में मेरे ब्लाग पर आए आभारी हूं। पाखी को मेरी तरफ से बहुत बहुत प्यार और शुभकामनाएं दें।
आशु अंकल तो पाखी के लिए बड़े प्यारे-प्यारे चित्र लेकर आते हैं. एक से बढ़कर एक....लाजवाब.
पाखी बिटिया , तुम्हें मम्मी पापा का ढेर सारा प्यार मिलता है और हमारा भी ...ये ब्लॉग इस बात का गवाह है. और ये प्यार से ओतप्रोत फोटो.........तुम बहुत लक्की हो ..राजस्थान में बेटे के जन्म पर थाली बजाते हैं...लेकिन .मेरे घर बेटी आई तो मैंने थाली बजाई थी ...बेटियों को प्यार की ज़रूरत है...जैसे तुम्हें मिलता है... जितना तुम्हें मिलता है......मैंने मेरी नई किताब ... चूँ - चूँ और दूसरी नई किताबें........रजिस्टर्ड डाक से भेजी है...अब तक तो मिल जानी चाहिए थी.... सूचना देना.....ओ के पाखी...बाय..बाय...
कित्ते प्यारे-प्यारे फोटोग्राफ्स हैं. कहीं बिल्ली, तो कहीं बादल, कहीं समुद्र तो कहीं डागी....और सब पाखी के साथ. मजेदार रहा.
@ राजेश उत्साही जी,
आपकी टिपण्णी पर कमेन्ट के लिए माफ़ी चाहूंगी, पर बिन कहे नहीं रहा गया. आपने लिखा है कि पाखी नर्सरी में पढ़ती हैं तो पक्के तौर पर वह अभी इतनी बड़ी नहीं हुई हैं ब्लाग लिख सके।.....आपकी बात प्रथम दृष्टया सही लगती है, पर पाखी का प्रोफाइल गौर से पढ़ें तो चीजें स्वत: साफ हो जाती हैं कि -""अब तो यहाँ भी खूब फुदक-फुदक करुँगी.पर अभी छोटी हूँ, इसलिए ममा-पापा के माध्यम से मेरी भावनाएं यहाँ व्यक्त होंगीं."..फिर इसमें बुराई क्या है ? हर समझदार व्यक्ति जानता है कि नर्सरी में पढने वाली बच्ची ब्लॉग पर नहीं लिख सकती, पर यदि उसके मम्मी-पापा उसकी भावनाओं और चित्रों को ब्लॉग पर प्रकाशित कर रहे हैं तो हर्ज़ क्या है. आप एक वरिष्ठ व्यक्ति हैं, पर कभी देखा है कि फिल्मों में नायक-नायिका गाते हुए दिखते हैं, पर असली गायक कोई और होता है. कई अभिनेत्रियाँ तो हिंदी कायदे से बोल भी नहीं पाती और उनके संवाद डब होते हैं. तमाम बाल-कलाकार आज धूम मचाये हुए हैं, पर उनके अभिनय के पीछे कोई और होता है.
......सवाल यहाँ भावनाओं का है, न कि व्यक्ति का. यदि पाखी की भावनाओं को उसके मम्मी-पापा ब्लॉग के माध्यम से सबके सामने लाते हैं, तो इसमें कोई हर्ज़ नहीं दिखता. हर माँ-बाप को अपने बच्चों की भावनाओं को शब्द देने का अधिकार है. यदि पाखी चित्र बनाती है और उसके मम्मी-पापा उसके नाम से ही उसे पोस्ट कर रहे हैं तो इसमें बुराई क्या है. हो सकता है पाखी अभी लिख नहीं पाती हो, पर इसका मतलब तो यह नहीं कि घर में वाह अपनी भावनाएं भी नहीं व्यक्त करती हो. इन भावनाओं को समझने की कोशिश कीजिये, न की उसमें तकनीक ढूढने की.
भई ये चित्रावली तो बहुत अच्छी लगी ।
@शहरोज जी,शुक्रिया। मेरी बात को आगे बढ़ाने के लिए। अगर आप अपनी टिप्पणी को ध्यान से पढेंगी तो पाएंगी कि आप मेरी बात का ही समर्थन कर रही हैं। मैं भी यही कह रहा हूं कि पाखी जो व्यक्त कर रही है उसे उसके ही शब्दों में प्रस्तुत करें तो वह ज्यादा प्रभावी होगा न कि पाखी बनकर अपने शब्दों में। पक्के तौर पर जो चित्र पाखी बनाए,वही उसके नाम से प्रकाशित होने चाहिए। इसलिए मैं तकनीक की बात नहीं उठा रहा हूं। मैं बात कर रहा हूं बालमनोविज्ञान की।
आपको कभी समय हो तो मेरे ब्लाग गुल्लक पर आएं। वहां मैंने एक ऐसी ही बच्ची शुभि सक्सेना के बारे में लिखा है जो उस उम्र में कविताएं कहती थी जब वह लिख या पढ़ नहीं सकती थी। उसकी दादी ने उसके शब्दों को ज्यों का त्यों कागज पर उतारा। और इतना ही नहीं उन कविताओं के लिए शुभि ने चित्र भी बनाए। बात यहीं नहीं रुकी शुभि की कविताएं और उसके चित्रों का एक संग्रह उसके पांचवें जन्मदिन पर प्रकाशित किया गया। पर इसमें मूल बात यह है कि उसकी कविताओं और चित्रों को ज्यों का त्यों रखा गया। मेरी इस पोस्ट का नाम है एक जन्मदिन ऐसा भी।
शहरोज जी अपने इस कथन पर आप पुन: विचार करें कि हर मां बाप को अपने बच्चों की भावनाओं को शब्द देने का अधिकार है। मेरा कहना है कि हर मां-बाप को अपने बच्चों को उनकी भावनाओं को व्यक्त करने की जगह और स्वतंत्रता देना चाहिए। यह बच्चों का
मौलिक अधिकार है। आप उनकी भावनाओं को शब्द देकर यानी एक नया अर्थ देकर उनके अधिकार का हनन करते हैं।
पाखी के माता-पिता क्षमा करें। मुझे नहीं पता कि यह जगह इस विमर्श के लिए उपयुक्त है या नहीं। पर हां इतना जानता हूं कि इस पर विमर्श होना चाहिए।
राजेश उत्साही जी की बात से पूरी तरह सहमत हूं। अब इस मंच पर पाखी के माता पिता को भी आना चाहिए और अपनी बात रखनी चाहिए। अभी इसलिए ज्यादा कुछ नहीं लिख रहा क्योंकि पाखी के माता पिता को आना है। उनका पक्ष जानने के बाद ही कुछ लिखूंगा। राजेश जी की बात बिल्कुल सही है। अगर हो सके तो उस पर गौर कीजिएगा।
चित्र बहुत सुन्दर हैं....और डौगी और बिल्ली भी...
राजेश उत्साही जी के अनुसार....पाखी के लिए नहीं, यह टिप्पणी उनके पापा-मम्मी के लिए है। जाहिर है कि पाखी नर्सरी में पढ़ती हैं तो पक्के तौर पर वह अभी इतनी बड़ी नहीं हुई हैं ब्लाग लिख सके।......अपने अनुभव के आधार पर कहना चाहता हूं कि आप पाखी के बालमन को अभी से इस चकाचौंध में मत डालिए। उसकी प्रतिभा को जरूर बढ़ावा दीजिए। उसे वे मौके दीजिए जो स्वाभाविक हैं। जिस दिन वो खुद से ब्लाग लिखने लायक हो जाए उस दिन उसकी मदद करें,वो भी केवल तकनीकी रूप में।... ये पत्र पढ़ कर मेरे मन भी कई सवाल उठते हैं..पहले मैं स्पष्ट कर दूं कि मैं जो कह रहा हूँ ये मेरा सोच है...मैं पाखी की ना तो कोई वकालत कर रहा हूँ और ना कोई किसी से स्पष्टीकरण मांग रहा हूँ...मेरे मन में ये सवाल उठ रहा है कि...क्या नर्सरी में पढने वाले बच्चे के कोई भावना नहीं होती...राजेश जी ने सुझाव दिया है कि "पाखी के बाल मन को अभी से इस चकाचौंध में मत डालिए... जिस दिन खुद ब्लॉग लिखने लग जाये उस दिन मदद करें....." बाल मन कितना जिज्ञासु होता है...ये कोई बताने की जरुरत नहीं ;है..जब खुद लिखने लग जाएगी तो इसकी मदद कैसे की जाएगी...आज करोड़ों लोग हैं जिन्हें ब्लॉग के क...ख...ग...का भी पता नहीं है...जबकि छोटे छोटे बच्चे ऐसे काम कर रहें हैं..मेरे कहने का मतलब ये है कि पाखी के ब्लॉग को निश्चित रूप से इनके मम्मी पापा अपडेट कर रहे हैं..लेकिन भावना तो पाखी की है..पाखी के साथ बैठ कर इनके मम्मी पापा ब्लॉग को शेयर तो करते हैं...मेरी बेटी मानसी जब नर्सरी में पढ़ती थी तब की बात है...ये बात अगले पत्र में दे रहा हूँ...
ये पत्र पढ़ कर मेरे मन भी कई सवाल उठते हैं..पहले मैं स्पष्ट कर दूं कि मैं जो कह रहा हूँ ये मेरा सोच है...मैं पाखी की ना तो कोई वकालत कर रहा हूँ और ना कोई किसी से स्पष्टीकरण मांग रहा हूँ...मेरे मन में ये सवाल उठ रहा है कि...क्या नर्सरी में पढने वाले बच्चे के कोई भावना नहीं होती...राजेश जी ने सुझाव दिया है कि "पाखी के बाल मन को अभी से इस चकाचौंध में मत डालिए... जिस दिन खुद ब्लॉग लिखने लग जाये उस दिन मदद करें....." बाल मन कितना जिज्ञासु होता है...ये कोई बताने की जरुरत नहीं ;है..जब खुद लिखने लग जाएगी तो इसकी मदद कैसे की जाएगी...आज करोड़ों लोग हैं जिन्हें ब्लॉग के क...ख...ग...का भी पता नहीं है...जबकि छोटे छोटे बच्चे ऐसे काम कर रहें हैं..मेरे कहने का मतलब ये है कि पाखी के ब्लॉग को निश्चित रूप से इनके मम्मी पापा अपडेट कर रहे हैं..लेकिन भावना तो पाखी की है..पाखी के साथ बैठ कर इनके मम्मी पापा ब्लॉग को शेयर तो करते हैं...मेरी बेटी मानसी जब नर्सरी में पढ़ती थी तब की बात है...ये बात अगले पत्र में दे रहा हूँ...
बहुत सुन्दर आपने बहुत मेहनत की है दोस्त !
टिप्पणी हटा दी गई
यह पोस्टलेखक के द्वारा निकाल दी गई है.
06 July, 2010
अब ये देख लीजिये कि हम तो टिप्पणी पोस्ट करना भी नहीं जानते ...आपने भी दो बार कर दी और मैंने चार बार..फिर कहीं लगा कि चलो जैसे भी है..ठीक है..क्योंकि हमें पूरा सूरा आता नहीं है...हम गर्भ से ही सीखना शुरू करते हैं और मरते दम तक सीखने की प्रक्रिया में रहते हैं.. पीढ़ियों तक सीखें ...तब भी पूरी दुनिया को भला कहाँ सीख पाते हैं....हाँ तो ...मैं अपनी छोटी बेटी मानसी का एक संस्मरण बता रहा था कि .वह जब नर्सरी में थी तब की बात है..मैंने अपना वेतन जेब से निकाल कर बैड पर रखा और कपड़े बदलने लगा..तब मानसी बैड पर बैठी अपना होम वर्क कर रही थी..उसने आँखों आँखों में ही मेरे आने पर स्वागत किया और अपने होम वर्क में लग गई...कपड़े बदलने के बाद मेरी नज़र वेतन की तरफ गई..मैंने देखा कि नोटों के मानसी का पैर छू रहा है..मैंने उसे गलती का एहसास कराते हुए कहा कि ...अरे ! पैर लगा दिया मानसी...!!! मैं सोच रहा था कि लक्ष्मी के पैर लग गया.....!!!!!!! मानसी ने नोटों की ओर देखा...फिर मेरी ओर देख कर क्षमा मांगती हुई बोली...सॉरी पापा जी...गाँधी जी पैर लग गया...उसके इतने ऊँचे विचार सुन कर मैंने उसे बांहों में भर लिया...और कहा..बेटा...तूं तो बहुत बड़ी है...मेरा सोच तेरे विचारों के आगे कुछ भी नहीं है...नर्सरी की बच्ची ने इतनी बड़ी बात इसलिए कह दी कि मेरे घर पर गाँधी जी, स्वामी विवेकानंद जी और महात्मा बुद्द के चित्र लगे थे...और मैं अपने बच्चों को बताता रहता हूँ....हम बच्चों को संस्कार देते हैं..खुद उदहारण बन कर....हमारे बच्चे यदि ग़लत हैं तो ....हम भी कहीं न कहीं ग़लत हैं.....मेरे हिसाब से पाखी के मम्मी पापा की तरफ से उसका ब्लॉग अपडेट करना ग़लत नहीं है..भावनाएं पाखी की ही हैं...मैं समझता हूँ कि वे पाखी के साथ उसके ब्लॉग को शेयर तो करते ही हैं..
हम गर्भ से ही सीखना शुरू करते हैं और मरते दम तक सीखने की प्रक्रिया में रहते हैं.. पीढ़ियों तक सीखें ...तब भी पूरी दुनिया को भला कहाँ सीख पाते हैं....हाँ तो ...मैं अपनी छोटी बेटी मानसी का एक संस्मरण बता रहा था कि .वह जब नर्सरी में थी तब की बात है..मैंने अपना वेतन जेब से निकाल कर बैड पर रखा और कपड़े बदलने लगा..तब मानसी बैड पर बैठी अपना होम वर्क कर रही थी..उसने आँखों आँखों में ही मेरे आने पर स्वागत किया और अपने होम वर्क में लग गई...कपड़े बदलने के बाद मेरी नज़र वेतन की तरफ गई..मैंने देखा कि नोटों के मानसी का पैर छू रहा है..मैंने उसे गलती का एहसास कराते हुए कहा कि ...अरे ! पैर लगा दिया मानसी...!!! मैं सोच रहा था कि लक्ष्मी के पैर लग गया.....!!!!!!! मानसी ने नोटों की ओर देखा...फिर मेरी ओर देख कर क्षमा मांगती हुई बोली...सॉरी पापा जी...गाँधी जी पैर लग गया...उसके इतने ऊँचे विचार सुन कर मैंने उसे बांहों में भर लिया...और कहा..बेटा...तूं तो बहुत बड़ी है...मेरा सोच तेरे विचारों के आगे कुछ भी नहीं है...नर्सरी की बच्ची ने इतनी बड़ी बात इसलिए कह दी कि मेरे घर पर गाँधी जी, स्वामी विवेकानंद जी और महात्मा बुद्द के चित्र लगे थे...और मैं अपने बच्चों को बताता रहता हूँ....हम बच्चों को संस्कार देते हैं..खुद उदहारण बन कर....हमारे बच्चे यदि ग़लत हैं तो ....हम भी कहीं न कहीं ग़लत हैं.....मेरे हिसाब से पाखी के मम्मी पापा की तरफ से उसका ब्लॉग अपडेट करना ग़लत नहीं है..भावनाएं पाखी की ही हैं...मैं समझता हूँ कि वे पाखी के साथ उसके ब्लॉग को शेयर तो करते ही हैं..
हम गर्भ से ही सीखना शुरू करते हैं....मैं अपनी बेटी मानसी का एक संस्मरण बता रहा था कि .वह जब नर्सरी में थी तब की बात है..मैंने अपना वेतन जेब से निकाल कर बैड पर रखा और कपड़े बदलने लगा..तब मानसी बैड पर बैठी अपना होम वर्क कर रही थी..उसने आँखों आँखों में ही मेरे आने पर स्वागत किया और अपने होम वर्क में लग गई...कपड़े बदलने के बाद मेरी नज़र वेतन की तरफ गई..मैंने देखा कि नोटों के मानसी का पैर छू रहा है..मैंने उसे गलती का एहसास कराते हुए कहा कि ...अरे ! पैर लगा दिया मानसी...!!! मैं सोच रहा था कि लक्ष्मी के पैर लग गया.....!!!!!!! मानसी ने नोटों की ओर देखा...फिर मेरी ओर देख कर क्षमा मांगती हुई बोली...सॉरी पापा जी...गाँधी जी पैर लग गया...उसके इतने ऊँचे विचार सुन कर मैंने उसे बांहों में भर लिया...और कहा..बेटा...तूं तो बहुत बड़ी है...मेरा सोच तेरे विचारों के आगे कुछ भी नहीं है...नर्सरी की बच्ची ने इतनी बड़ी बात इसलिए कह दी कि मेरे घर पर गाँधी जी, स्वामी विवेकानंद जी और महात्मा बुद्द के चित्र लगे थे...और मैं अपने बच्चों को बताता रहता हूँ....हम बच्चों को संस्कार देते हैं..खुद उदहारण बन कर....हमारे बच्चे यदि ग़लत हैं तो ....हम भी कहीं न कहीं ग़लत हैं.....मेरे हिसाब से पाखी के मम्मी पापा की तरफ से उसका ब्लॉग अपडेट करना ग़लत नहीं है..भावनाएं पाखी की ही हैं...मैं समझता हूँ कि वे पाखी के साथ उसके ब्लॉग को शेयर तो करते ही हैं..
जो बच्चों के बारे में सोचते हैं और बच्चों से बात करना पसंद करते हैं . वे कृपया कभी मेरे ब्लॉग पर भी आयें...अपने विचारों से लाभान्वित करें...मार्गदर्शन करें..सुझाव दें..अच्छा लगे तो प्रशंसा करें....प्रतीक्षा में बैठा हूँ पलकें बिछाये..... .
बच्चा गर्भ में ही सीखना शुरू कर देता है..फिर पाखी तो नर्सरी में पढ़ती है...मैं पाखी की कोई वकालत नहीं कर रहा हूँ...सच तो सच है.. मैं बच्चों के लिए लिखता हूँ..बाल मन मैं भी समझता हूँ..बड़ी टिप्पणी इसमें होती नहीं है..अत: छोटी छोटी टिप्पणियाँ कर रहा हूँ..
मेरी बेटी मानसी नर्सरी में पढ़ती थी तब की बात है..बात केवल बात नहीं है..एक तरह से एक संदर्भ है..इस वार्तालाप का..मानसी घर में बैड पर बैठी अपना होम वर्क कर रही थी...
मैं जैसे ही घर पहुंचा...दोनों की नज़रें मिलीं...और एक दूसरे को आँखों आँखों में उपस्थिति दर्ज करा दी..मैंने जेब से वेतन निकाला और बैड पर रख कर कपड़े बदलने लगा..तभी मैंने देखा कि मानसी का पैर नोटों के लगा हुआ है..मैं झट से उसके नज़दीक पहुंचा...और कहा...अरे !!!! देखो मानसी.....पैर लगा दिया...मेरा भाव था कि लक्ष्मी के पैर लगा दिया...
@ राजेश उत्साही जी,
आपकी बात पढ़ी, पर आपसे सहमत नहीं हो सकी. आप चाहते हैं कि जब तक बच्चे इतने बड़े न हो जाएँ कि खुद लिख-पढ़ सकें, उनके नाम पर ब्लागिंग इत्यादि नहीं करनी चाहिए. तब तो बच्चों के नाम पर चल रहे हर ब्लॉग को बंद कर देना चाहिए, क्योंकि अधिकतर ब्लोगस में बच्चों के मम्मी-पापा ही उनकी भावनाओं को शब्द दे रहे हैं. इसका मतलब कि ऐसे मम्मी-पापा अपने बच्चों की मौलिकता का हनन कर रहे हैं....यह सोच खुद में अजीब सी नहीं लगती. बच्चे माँ-बाप की ऊँगली पकड़कर ही बड़े होते हैं, उन्हीं से शब्द व संस्कार सीखते हैं, फिर उन पर यह तोहमत लगाना कि आप उनकी भावनाओं को शब्द देकर उनके अधिकार का हनन करते हैं..बड़ा हास्यास्पद लगता है. (अपने पक्ष मजबूत करने के लिए इसमें ''यानी एक नया अर्थ देकर'' जोड़ा है, जो कि आपकी व्यक्तिगत सोच है. )
आपने एक बच्ची शुभि सक्सेना के बारे में लिखा है जो उस उम्र में कविताएं कहती थी जब वह लिख या पढ़ नहीं सकती थी। उसकी दादी ने उसके शब्दों को ज्यों का त्यों कागज पर उतारा।....आप इस बात को जस का तस स्वीकार कर सकते हैं, पर हर कोई नहीं ??...
हर माँ-बाप के अपने बच्चों को पालने के तरीके हैं, उनकी भावनाओं को स्थान देने के तरीके हैं और इसी आधार पर अधिकतर ब्लोगस में बच्चों के मम्मी-पापा ही उनकी भावनाओं को शब्द दे रहे हैं. जब तक ये बच्चे बड़े नहीं हो जाते, तब तक उनकी भावनाओं को माँ-बाप द्वारा शब्द देने का अर्थ यह नहीं कि माँ-बाप उस पर अपने विचारों को थोप रहे हैं या उनकी मौलिकता का हनन कर रहे हैं. माफ़ कीजिये, आपसे सहमत होना मेरे लिए संभव नहीं दिखता.
वाह पाखी, आशु अंकल ने तो तुम्हारे चित्रों को और भी मजेदार बना दिया है...लाजवाब.
मानसी ने पहले नोटों की तरफ देखा...फिर मेरी तरफ...और ग़लती मानते हुए बोली...सॉरी पापा जी...गाँधी जी के पैर लग गया...उसके इतना बोलते ही मैं हक्का बक्का रहा गया...मैंने उसे झट से बांहों में भर लिया..और उसे प्यार करते हुए मन ही मन बोला..तूं तो बहुत बड़ी है बेटा...मैं तो कुछ भी नहीं...
..आजकल तो यह ब्लॉग विमर्श को भी बढ़ावा दे रहा है, भले ही टिप्पणियों के खाने में. पर यही तो कुछेक ब्लॉगों की विशेषता बन जाती है. चर्चा चालू आहे.
मानसी नर्सरी में पढ़ती थी तब की बात है.. बच्चा तो गर्भ में ही सीखना शुरू कर देता है..जबकि पाखी तो नर्सरी में है..मैं पाखी की वकालत नहीं कर रहा हूँ.. ये तो मेरा सोच है...
मानसी ने ऐसा क्यों कहा ...सॉरी पापा जी...गाँधी जी के पैर लग गया...वो इसलिए कि हम जैसे संस्कार बच्चों को देंगे.....बच्चे वैसे ही तो बनेंगे..यदि बच्चे में कहीं कोई कमी रहती है तो हम कहीं न कहीं ग़लत हैं...
प्रिय उत्साही जी,
मैं पाखी की ममा हूँ. इस ब्लॉग पर आपकी टिपण्णी पढ़ी..धन्यवाद. आपने लिखा है कि- ''आप पाखी के बालमन को अभी से इस चकाचौंध में मत डालिए। आप उनकी भावनाओं को शब्द देकर यानी एक नया अर्थ देकर उनके अधिकार का हनन करते हैं। पाखी के माता-पिता क्षमा करें।'' समझ में नहीं आया कि पाखी के बारे में आपकी इन धारणाओं का आधार क्या है ?? बाल-मनोविज्ञानं, किसी बाल-पत्रिका का संपादन, अपने ब्लॉग पर पोस्ट पढने, जैसे उद्धरण देकर क्या आप यह कहना चाह रहे हैं कि बाल-मन के प्रति आपकी समझ ज्यादा उन्नत है और औरों की कम. आपने अपनी एक पोस्ट का उदहारण देते हुए लिखा है कि - पर इसमें मूल बात यह है कि उसकी कविताओं और चित्रों को ज्यों का त्यों रखा गया, बढ़िया है जनाब. किसी पर इतना अन्धविश्वास और किसी की प्रतिभा पर इतना अविश्वास...यह दोहरापन क्यों ??
मैंने अपने पूर्व घर में ( जो मेरी हिंदी बाल कहानियों की पहली किताब " चिंटू - पिंटू की सूझ " पर 1988 - 89 में मिले अवार्ड से बना था.) गाँधी जी, स्वामी विवेकानंद और महात्मा बुद्द के चित्र लगा रखे थे..और उनके बारे में मैं अपने बच्चों को बताता रहता था ..मानसी को दिए वे संस्कार ही उसके विचारों का प्रतिबिम्ब था..
Beautiful !!
उत्साही जी बाल मन समझते हैं..मेरे विचारों को अन्यथा नहीं लेंगे..फुंसी छोटी सी होती है..डॉक्टर को दिखाओ तो डॉक्टर साहब कहेंगे..बड़े वहमी हो..छोटी सी फुंसी को परेशानी समझ लिया...और फुंसी को कुछ ना समझते हुए यदि हम गैर जिम्मेदार हो जाएँ तो...बाद में वे ही डॉक्टर साहब कहेंगे...आप पढ़े लिखे हैं..आपको पहले ही दिखाना चाहिए था...
बड़े प्यारे प्यारे फोटो लगाये हैं. :)
@ दीनदयाल जी आप मेरी परीक्षा ले रहे हैं या कोई पहेली पूछ रहे हैं। बात कुछ समझ में नहीं आई।
जितनी सुन्दर आप हैं उतनी सुन्दर फोटो भी लगीं.....
बहुत सुन्दर...बहुत सुन्दर
i disagree with rajesh Utsahi. Why he is against Pakhi"s Blog. the Blog is so seeet and full of child innocence. i strongly condemn the view of Mr rajesh Utsahi and also request him not to post such nasty thing on a nice blog which is so popular and prevalent on Blog world.
i support Pakhi"s Blog and urge Mr Rajesh & Pankaj not to say such thing on the blog, plz keep your suggestion with yourself and let us blogging.
ans last but not least ,my request to Pakhi"s Dad and Mom , plz keep blogging and just do not pay attention to this Bakwas comment whcih is purely unwarranted.
Best of luck and keep Blogging
@ आकांक्षा जी धारणाएं, पाखी के बारे में नहीं आप लोगों के बारे में बन रही हैं। मैंने अपने जिस अनुभव का ब्यौरा दिया उसका कतई यह अर्थ नहीं है कि वह ज्यादा उन्नत है। पर हां वह ज्यादा व्यावहारिक और सार्थक है यह कहने में मुझे कोई झिझक नहीं है। आपकी समझ कम या ज्यादा, उन्नत है पिछड़ी इस बारे में मैंने तो कुछ कहा ही नहीं। जहां तक पाखी की प्रतिभा का सवाल है तो वह तो यहां ब्लाग में आ ही नहीं रही। प्रतिभा तो सारी आप ही लोगों की आ रही है। आप पाखी की उस प्रतिभा को जो उसमें है स्वाभाविक रूप से आने दीजिए न। बहरहाल पाखी आपकी बेटी है, ब्लाग आपका है।
जहां तक शुभि की पोस्ट का सवाल है तो अनुरोध है कि उसे एक बाद देख लें। फिर अपनी प्रतिक्रिया दें।
यह कतई जरूरी नहीं है कि आप मेरी राय से सहमत हों। मेरा एक मत है जो मैंने आपके सामने रखा।
@शहरोज जी, यह कतई आवश्यक नहीं है कि आप मेरे मत से सहमत ही हों। मुझे पता है कि जो बात मैं कह रहा हूं उससे बहुत सारे लोगों की असहमति होगी। पर फिर कहूंगा कि मैं अपने अनुभव से यह मानता और जानता हूं कि यह बच्चों को विकसित होने देने का स्वाभाविक तरीका नहीं है। इस बात पर पिछले बीस पच्चीस सालों में बहुत शोध हुआ है कि बच्चे आखिर कैसे सीखते हैं। यह अवधारणा अब पुरानी पड़ गई हैं कि बच्चे मां बाप के संस्कार से सीखते हैं। बच्चे सीखते हैं अपने परिवेश से । लेकिन उस परिवेश से जो स्वाभाविक रूप से होता है,कृत्रिम नहीं। शहरोज जी मैंने कतई यह नहीं कहा कि आप बच्चों की भावनाओं को शब्द देकर उन पर अपने विचार थोप रहे हैं। मैं कह रहा हूं कि आप उनके अधिकार का हनन कर रहे हैं,अतिक्रमण कर रहे हैं। यह केवल ब्लागिंग की बात नहीं है। मैं हर क्षेत्र में इस बात का पक्षधर हूं कि बच्चों का विकास स्वाभाविक तरीके से होना चाहिए। बच्चों के नाम पर जो ब्लाग हैं उनमें वास्तव में बच्चों की नहीं उनके मां-बाप की ही भावनाएं व्यक्त हो रही हैं। मैंने पहले ही कहा कि आप मेरी बात से सहमत हों यह मेरे लिए कतई आवश्यक नहीं है।
@दीनदयाल जी आपने बहुत सारी बातें कहीं हैं। और आपने यह आमंत्रण भी दिया है कि आपके ब्लाग पर आऊं। शुक्रिया। मैं आपकी बातों पर अपनी प्रतिक्रिया आपके ब्लाग में आकर ही करना चाहूंगा। जहां तक दो दो बार या चार बार टिप्पणी प्रकाशित होने का सवाल है तो वह इसलिए हुआ,क्योंकि कल दिन भर गूगल के ब्लाग सेक्शन में कुछ समस्या थी। यह आप आज कई अन्य ब्लाग पर भी देख रहे होंगे। ब्लागर परेशान थे उनकी टिप्पणियां कहां जा रही हैं। देर रात वे अचानक ही दिखाई देने लगीं। मुझे भी आपकी एक छोटी सी टिप्पणी ही दिखाई दी थी। जिससे कुछ समझ नहीं आ रहा था। इसीलिए मैंने जवाब में यह लिखा था कि आप परीक्षा ले रहे हैं या पहेली पूछ रहे हैं।
@मृत्युंजय आपकी इस टिप्पणी में क्या इतना ही काफी नहीं था कि आप मेरे मत से असहमत हैं। मैंने यह कब कहा कि मैं पाखी के ब्लाग का विरोधी हूं। आप मेरे मत की कड़े शब्दों में भर्त्सना करने के बाद भी नहीं रूके। आप कहते हैं कि इस बकवास पर ध्यान नहीं दिया जाए। बकवास की भर्त्सना नहीं की जाती और न ही उससे असहमति जताई जाती है। सुझाव अपने पास रखने के लिए नहीं होते, वे देने के लिए ही होते हैं।
मुझे पता है कि मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा जिससे पाखी के मम्मी-पापा ब्लागिंग करना बंद कर देंगे। वह केवल एक मत है उससे असहमत होने का उन्हें और अन्य किसी को भी उतना ही अधिकार है जितना मुझे कहने का।
मृत्युंजय गुस्से् में नहीं ठंडे दिमाग से मेरी बात पर विचार करियेगा। यह सार्वजनिक मंच है।
खूबसूरत चित्रों की श्रृंखला...जितनी भी बड़ाई करूँ कम है.
भैये राजेश उत्साही जी,
काहे को सठिया कर अपना आपा खो रहें हो. लगता है बच्चों की पत्रिका में सम्पादकीय लिखते-लिखते हर जगह बच्चों को अपनी जागीर ही समझ बैठे हो कि बच्चे आपके हिसाब से चलें. खुद तो कोई रचनात्मक कार्य कर नहीं सकते, उस पर से अपनी योग्यता बघारने यहाँ चले आये. भैये, अपने ब्लॉग पर कुछ अच्छा लिखो, खुद ही पाठक आएंगे. इसके लिए दूसरों के ब्लॉग पर जाकर नुक्ताचीनी करने की जरुरत नहीं है.
Pakhi...Doing well. Go ahead !!
@ राजेश उत्साही,
यह भी बताने का कष्ट कीजियेगा कि आपकी इस फालतू टिपण्णी के चलते आपका प्रोफाइल देखने कितने लोग पहुंचे. उसका श्रेय भी तो पाखी और उसके मम्मी-पापा को दिया जायेगा कि कहाँ आपको पढने वाले कम ही थे, अब संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है. बधाई हो उत्साही भैये.
@ राजेश उत्साही जी,
जब आप खुद स्वीकार रहे हैं कि- ''मुझे पता है कि जो बात मैं कह रहा हूं उससे बहुत सारे लोगों की असहमति होगी।''...तो फिर इसके आगे कुछ कहने कि जरुरत ही नहीं रह जाती. यदि आपकी बात में तथ्य होता तो तो आपसे सहमत होने वाले लोग भी काफी होते, पर दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं है. अपनी इस कमजोरी को अपने बेहिचक स्वीकारा, उसके लिए आपकी प्रसंशा की जानी चाहिए.
क्या बात है पाखी. इत्ते सारे चित्र. मम्मी-पापा के साथ-साथ ढेर सारी चीजें भी दिख रही हैं. शुभकामनायें और प्यार.
अले पाखी के ब्लॉग के सारे चित्र तो एक ही जगह सिमट गए...मजा आ गया देखकर यह सब.
चित्रमय पाखी की दुनिया.
मन को भा गई.
पाखी, अपने आशु अंकल से कहकर हमारी भी पिक्चर इसी तरह बनवा दो प्लीज़. तुम्हें ढेर सारी चाकलेट देंगे.
भला पाखी के चित्र किसे नहीं भाएंगे. मुझे तो सभी प्यारे लगे. वो डागी वाला कित्ता क्यूट लग रहा है.
@ दीनदयाल शर्मा जी,
आपकी बातें अच्छी लगीं. बाल-मन पर आपकी मजबूत पकड़ है.
पाखी की दुनिया में आया था खूबसूरत चित्र देखने, पर यहाँ तो बाकायदा वाक-युद्ध चल रहा है. राजेश उत्साही जी यह स्वीकार करते हुए भी की ''मुझे पता है कि जो बात मैं कह रहा हूं उससे बहुत सारे लोगों की असहमति होगी।'' दे दनादन अपना ज्ञान जबरदस्ती बाँटने में लगे हुए हैं. ज्ञान तक की बात तो सही थी पर उत्साही जी के इस ज्ञान के पीछे उनका अहम् ज्यादा नजर आ रहा है. वे सोच रहे हैं कि वे जो कह रहे हैं, वह एकदम सही है. तभी तो आकर पलट-पलटकर टिप्पणियां कर रहे हैं. आखिर अपने को इतना बुद्धिमान संपादक जो समझते हैं. अब उनकी अहमक बातों को गौर से पढ़िए, खुद ही उत्साही जी की *अपने मुंह मियां मिट्ठू* वाली कहावत चरितार्थ होती नजर आयेगी-
१) मैंने बालविज्ञान पत्रिका चकमक का 17 साल तक संपादन किया है। अपने उस अनुभव के आधार पर कहना चाहता हूं कि...!
२) मैंने अपने जिस अनुभव का ब्यौरा दिया उसका कतई यह अर्थ नहीं है कि वह ज्यादा उन्नत है। पर हां वह ज्यादा व्यावहारिक और सार्थक है यह कहने में मुझे कोई झिझक नहीं है।
३) जहां तक शुभि की पोस्ट का सवाल है तो अनुरोध है कि उसे एक बाद देख लें। फिर अपनी प्रतिक्रिया दें।
४) इस बात पर पिछले बीस पच्चीस सालों में बहुत शोध हुआ है कि बच्चे आखिर कैसे सीखते हैं। यह अवधारणा अब पुरानी पड़ गई हैं कि बच्चे मां बाप के संस्कार से सीखते हैं।
@ersymops जी मैं तो खैर सठिया गया हूं। आप जैसे कभी नहीं सठियाएंगे। आप में तो इतनी हिम्मत भी नहीं कि अपनी प्रोफाइल शेयर कर सकें। और अगर आलोचनाओं से इतनी ही चिड़ है तो तो ब्लाग में टिप्पणी मॉडरेट करने की सुविधा का उपयोग करें न।
@ शहरोज जी असहमति या असहमत होने का मतलब कमजोर होना नहीं होता है। विडम्बना तो यही है न कि ब्लागिंग की दुनिया में भी भेड़ चाल ही चलती है।
@ shyama जी आपमें भी इतनी हिम्मत नहीं है कि अपनी तस्वीर अपनी प्रोफाइल पर लगा सकें । आपने मेरी टिप्पणियों से जो बातें निकालकर फिर से दोहराई हैं उनके लिए आभारी हूं। जी हां आपके शब्दों में मैं ज्ञान बांट रहा हूं। अब यह तो आप पर निर्भर है कि आप ज्ञान ग्रहण करें या न करें। इसके लिए इतनी हायतौबा क्यों मचा रहे हैं।
बच्चे अपने मन में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं रखते..वे लड़ते हैं तो पल भर बाद ...वैसे के वैसे...यानी फिर से दोस्त बन जाते हैं...हमें बच्चों से प्रेरणा लेनी चाहिए...क्या बच्चों से हम कुछ नहीं सीख सकते......? खून से ज्यादा गहरे रिश्ते होते हैं..विचारों के रिश्ते...यदि हमारे विचार मिलते हैं तो रिश्ता है..नहीं तो नहीं ...कई बार पति पत्नी..माँ बाप ...भाई भाई..बहिन भाई..के गहरे रिश्ते होने के बावजूद ...नहीं बनती..क्योंकि विचार नहीं मिलते... बच्चे इनसे भी ऊपर हैं..क्या हम बच्चे नहीं बन सकते...!!! हमें अब सारी बातें छोड़ कर वापस सामान्य होना है..ब्लॉग पर आना है..जाना है.. टिप्पणी, सुझाव, मार्गदर्शन . आदि देते रहना है...सारे ताम झाम छोड़कर ....वापस वैसा ही होना है...जैसे थे...दिल दिमाग खुला रखना है.. मैं कोई उपदेश नहीं दे रहा हूँ...कृपया एक बार ऐसा करके तो देखें.. बच्चा बन कर तो देखें...आओ ....हम सब मिलकर बच्चों से संस्कार लें....
@ rajesh Utshahi
you are just a "persona non grata"
mai to sabse chota hu bhir bhi itna hi kahunga ki ife ko positive dekhna chahiye ...pakhi aaj nahi likh rahi hai to kya huya....us din ke bare me soco jab pakhi bari ho jayegi our apne bare me read karegi to uske face per kitni smaile hogi..us smile ke bare me sochiye....
'ब्लागोत्सव-2010' द्वारा 'वर्ष की श्रेष्ठ नन्ही चिट्ठाकारा' का ख़िताब पाने पर अक्षिता (पाखी) को बधाइयाँ. इस अवसर पर पाखी के पापा के.के. यादव जी और ममा आकांक्षा यादव जी को भी बधाई कि उन्होंने पाखी को वो परिवेश और संस्कार दिए कि पाखी को आज यह सम्मान मिला. वैसे पाखी है ही इतनी प्यारी कि लोग खींचे चले आते हैं. रविन्द्र प्रभात और आयोजन से जुड़े सभी लोगों ने पाखी को श्रेष्ठ नन्ही चिट्ठाकारा का ख़िताब देकर जता दिया है कि बच्चे भी किसी से कम नहीं. पाखी को एक बार फिर से हार्दिक बधाइयाँ.
जितनी सुन्दर आप हैं उतनी सुन्दर फोटो भी लगीं.....
बहुत सुन्दर...बहुत सुन्दर
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