अंडमान में पिछले तीन दिनों से खूब बारिश और तूफानी हवाएं चल रही हैं. सभी द्वीपों पर जाने के लिए अधिकतर बोट, हेलीकाप्टर इत्यादि कैंसल हो गए हैं. इस सबके चक्कर में तो क्रिसमस का सारा मजा ही ख़राब हो गया. मेरी छुट्टियाँ हैं, पर कहीं घूमने भी नहीं जा पा रही हूँ.
..आपको पता है 26 दिसंबर 2004 को अंडमान-निकोबार में भयंकर सुनामी आई थी. आज उस घटना को सात साल पूरे हो गए हैं. यहाँ पोर्टब्लेयर के जिस मरीना पार्क में मैं खेलती हूँ, वह भी सुनामी में ध्वस्त हो गया था. अब तो नया पार्क बना है. ऐसे ही यहाँ बहुत सारी चीजें नष्ट हो गईं. पापा बता रहे थे कि सबसे ज्यादा नुकसान निकोबार में हुआ था. मैं तो अभी तक निकोबार नहीं गई हूँ, पर पापा दो बार घूम आए हैं.
पापा अभी 20 और 21 दिसंबर, 2011 को निकोबार गए थे. वहाँ से वे ढेर सारी तस्वीरें कैमरे में कैद करके लाए. आप भी देखिए-
सुनामी मेमोरियल, निकोबार के मुख्य गेट के समक्ष पापा श्री कृष्ण कुमार यादव जी...आपको पता है 26 दिसंबर 2004 को अंडमान-निकोबार में भयंकर सुनामी आई थी. आज उस घटना को सात साल पूरे हो गए हैं. यहाँ पोर्टब्लेयर के जिस मरीना पार्क में मैं खेलती हूँ, वह भी सुनामी में ध्वस्त हो गया था. अब तो नया पार्क बना है. ऐसे ही यहाँ बहुत सारी चीजें नष्ट हो गईं. पापा बता रहे थे कि सबसे ज्यादा नुकसान निकोबार में हुआ था. मैं तो अभी तक निकोबार नहीं गई हूँ, पर पापा दो बार घूम आए हैं.
पापा अभी 20 और 21 दिसंबर, 2011 को निकोबार गए थे. वहाँ से वे ढेर सारी तस्वीरें कैमरे में कैद करके लाए. आप भी देखिए-
सुनामी मेमोरियल, निकोबार के समक्ष पापा श्री कृष्ण कुमार यादव जी.
सुनामी मेमोरियल, निकोबार के अन्दर प्रदर्शित पट्टिका, जिस पर लिखा है कि आगामी पीढ़ियों को इस विभीषिका को कभी नहीं भूलना चाहिए.
सुनामी मेमोरियल, निकोबार के अन्दर प्रदर्शित पट्टिका, जिस पर उन लोगों के नाम दर्ज हैं, जो सुनामी की भेंट चढ़ गए. इस पर लगभग 700 लोगों के नाम अंकित हैं. इसमें मात्र उन्हीं लोगों के नाम शामिल हैं, जिनका मृत-शरीर पाया गया. जिनका मृत शरीर नहीं पाया गया, उनके बारे में यह पट्टिका मौन है.निकोबारी गाँव में एक निकोबारी-हट में लगी उन लोगों की नाम पट्टिका, जो सुनामी की विभीषिका में ख़त्म हो गए.उक्त नाम-पट्टिका के समक्ष बैठे वृद्ध निकोबारी से जानकारी लेने के बाद पापा श्री कृष्ण कुमार यादव जी.निकोबारी गाँव में निकोबारी-हट के समक्ष पापा श्री कृष्ण कुमार यादव जी.
निकोबारी-हट के अन्दर पापा श्री कृष्ण कुमार यादव जी.
निकोबारी हट के समक्ष पापा श्री कृष्ण कुमार यादव जी. हर निकोबारी कबीले में ऐसी एक हट होती है, जिसे वे सामुदायिक-गृह के रूप में प्रयोग करते हैं. शादी-ब्याह, उत्सव के दौरान मेहमानों के ठहरने के लिए इसका उपयोग किया जाता है. यह दो मंजिला होती है.सुनामी से पहले बनी निकोबारी-झोपड़ियाँ, जो अब नष्टप्राय हो गई हैं. इसके बदले में प्रशासन ने निकोबरियों को नए घर उपलध कराए हैं.सुनामी पश्चात् निकोबरियों को सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए नए मकान.
सुनामी के दौरान पुरानी जेट्टी स्थित समुद्र तट के पास अवस्थित कई मकान इत्यादि ध्वस्त हो गए, पर मुरूगन देवता का यह मंदिर सलामत रहा. यही कारण है कि लोग इस मंदिर के प्रति काफी आस्था रखते हैं.
निकोबार में समुद्र तट के किनारे पड़ी, निकोबारी लोगों द्वारा इस्तेमाल की जाती रहीं डोंगी (बोट). सुनामी के दौरान ये सब ख़राब हो गईं.सुनामी के दौरान निकोबार में काफी नुकसान हुआ. इसी दौरान एक जलयान (Ship) पानी में डूब गया. उसके अवशेष अभी भी देखे जा सकते हैं.निकोबार की पुरानी जेट्टी, जो सुनामी में नष्ट हो गई. अब यहाँ नई जेट्टी बनाने का कार्य चल रहा है.
सुनामी ने यहाँ की प्राकृतिक सम्पदा और जैव विविधता को काफी नुकसान पहुँचाया. समुद्र के किनारे और जंगलों तक में नष्ट हो गई कोरल्स बिखरी पड़ी हैं.ऐसी ही कोरल्स के साथ पापा श्री कृष्ण कुमार यादव जी. अंडमान-निकोबार के समुद्र तट (Beach) अपनी प्राकृतिक सुन्दरता के साथ-साथ मोतियों जैसे चमकते सफ़ेद बालू के लिए भी जाने जाते हैं. इनका आकर्षण ही कुछ अलग होता है.इस आकर्षण का लुत्फ़ उठाते पापा श्री कृष्ण कुमार यादव जी.
निकोबार में एक तट का रमणीक दृश्य.
निकोबार में नारियल वृक्षों का एक रमणीक दृश्य. निकोबारी नारियल-फल को इकठ्ठा कर मुख्य भूमि भेजते हैं और यह इनकी आय का प्रमुख स्रोत है.
निकोबार में मात्र दो जनजातियाँ पाई जाती हैं-निकोबारी और शौम्पेन. इनमें से निकोबारी अब सभ्य हो चुके हैं. वे बकायदा शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं और तमाम रोजगारों में भी हैं. निकोबारी बालकों के साथ पापा श्री कृष्ण कुमार यादव जी.दितीय विश्व-युद्ध के दौरान अंडमान-निकोबार पर जापानियों का कब्ज़ा रहा. उन्होंने शत्रु-राष्ट्रों से मुकाबले के लिए अंडमान-निकोबार की अवस्थिति के चलते इसे एक महत्वपूर्ण सामरिक क्षेत्र के रूप में इस्तेमाल किया. यहाँ पर अभी भी कई बंकर और तोपों के अवशेष देखे जा सकते हैं. ऐसी ही एक तोप के समक्ष खड़े पापा श्री कृष्ण कुमार यादव जी.1942-45 के दौरान दितीय विश्व युद्ध के समय जापानियों का अंडमान-निकोबार पर कब्ज़ा रहा. इस दौरान उन्हें सबसे ज्यादा भय अंग्रेजी बोलने वालों और शिक्षित लोगों से था. ऐसे लोगों को वे अंग्रेजों का मुखबिर समझते थे. ऐसे तमाम लोगों को जापानियों ने न्रीशन्षता -पूर्वक मौत के घाट उतार दिया. सेंट थामस न्यू कैथेड्रल चर्च, मूस, कार निकोबार के समक्ष ऐसे लोगों की सूची, जिन्हें जापानियों ने ख़त्म कर दिया.
सेंट थामस न्यू कैथेड्रल चर्च, मूस, कार निकोबार के समक्ष बिशप डा. जान रिचर्डसन (1884- 3 जून 1978) की मूर्ति. बिशप डा. जान रिचर्डसन को निकोबरियों को सभ्य बनाने का श्रेय जाता है. भारत सरकार द्वारा पद्मश्री और पद्म भूषण से सम्मानित बिशप जान रिचर्डसन संसद हेतु अंडमान-निकोबार से प्रथम मनोनीत सांसद भी थे.सेंट थामस न्यू कैथेड्रल चर्च, मूस, कार निकोबार के समक्ष बिशप डा. जान रिचर्डसन (1884- 3 जून 1978) की समाधि.सेंट थामस न्यू कैथेड्रल चर्च, मूस, कार निकोबार में एक निकोबारी बालक और अपने मित्र के साथ पापा श्री कृष्ण कुमार यादव जी.
कार-निकोबार में अवस्थित जान रिचर्डसन स्टेडियम. इसका उद्घाटन 15 अप्रैल, 1994 को तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री पी. वी. नरसिम्हा राव जी द्वारा किया गया था. अंडमान-निकोबार लोक निर्माण विभाग के अतिथि-गृह में पापा श्री कृष्ण कुमार यादव जी.अंडमान-निकोबार लोक निर्माण विभाग के अतिथि-गृह के समक्ष पापा श्री कृष्ण कुमार यादव जी.कार-निकोबार में किमूस-नाला के ऊपर बने इस 180 फीट के वैली-ब्रिज का उद्घाटन दिसंबर माह में ही अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के मुख्य सचिव श्री शक्ति सिन्हा द्वारा किया गया है. इस पुल के बन जाने से आवागमन में काफी सुविधा उत्पन्न हो गई है.
...तो कैसी लगी यह निकोबार यात्रा. आप जब भी आइयेगा, निकोबार घूमने जरुर जाइएगा. निकोबार जाने के लिए जिला-उपायुक्त से विशेष पास लेने की जरुरत होती है. वहाँ होटल इत्यदि की सुविधा नगण्य ही मानें. पोर्टब्लेयर से हेलीकाप्टर द्वारा एक घंटे और शिप द्वारा कार-निकोबार पहुँचने में लगभग 15-18 घंटे लगते हैं.
11 टिप्पणियां:
सर्वप्रथम तो सुनामी में प्रकृति की काल-लीला का शिकार हुए सभी लोगों को श्रद्धांजलि.
निकोबार के बारे में इतने विस्तार से चित्रमय जानकारी देने के लिए अक्षिता जी और उनके पापा जी का आभार. आपने तो हमें बहुत कुछ बता दिया, जो हम जानते ही नहीं थे.
बढ़िया पोस्ट.....
एक साथ ही इत्ती सारी जानकारी..भारत के सुदूर दूरस्थ क्षेत्र में जाना शायद ही संभव हो सके, पर इतने जीवंत चित्र देखकर मन भर आया.
सुनामी की यादें अभी भी दिल दहला देती हैं. हमने तो मात्र चित्र देखे थे. आप लोग तो उस जगह पर साक्षात् हैं.
पाखी ने बहुत सुन्दर फोटो दिखाए. काश सुनामी फिर कभी न आये. पाखी को मम्मी पापा और छुटकी के साथ नए साल की शुभकामनाएं- कुश्वंश अंकल
सुनामी का इतनी नजदीक से दर्शन और तदोपरांत हुए परिवर्तन देखकर दंग हूँ. सारी फोटो अपने में जीवंत लगती हैं. इसी बहाने निकोबार की ऐतिहासिकता से भी रूबरू होने का मौका मिला. पाखी के पापा जी कृष्ण कुमार यादव जी इसके लिए साधुवाद के पात्र हैं.
जब पापा जी ने घूम लिया तो अब आपकी बारी. फ़िलहाल हम तो इन चित्रों के माध्यम से ही सब कुछ महसूस कर सकते हैं.
इन चित्रों के माध्यम से निकोबार के बारे में इतने विस्तार से रूबरू होने का मौका मिला.बढ़िया पोस्ट आभार और पाखी.... नए साल की शुभकामनाएं :)
पाखी ने तो ढेर सारे सुन्दर -सुन्दर फोटो दिखाए हैं ...कभी मौका मिला तो घूमने जरुर जाएँगे
नए साल की शुभकामनाएं.
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