आजकल 'राष्ट्रीय डाक सप्ताह' चल रहा है. पापा तो खूब व्यस्त हैं. बच्चों के लिए खूब रंग-बिरंगी डाक-टिकटें भिजवाई जा रही हैं. ढेर सरे कार्यक्रम भी आयोजित हो रहे हैं. मुझे तो अक्सर खूबसूरत डाक टिकटों को देखने का मौका मिलता है. मैंने तो कानपुर में सोने के डाक टिकट भी देखे थे और खुशबुओं वाले भी. अभी कुछ दिनों पहले पापा ने खादी का डाक टिकट भी दिखाया, जिस पर राष्ट्रपिता गाँधी जी का चित्र बना है. तो चलिए आज डाक-टिकटों से जुडी कुछ रोचक बातें जानते हैं पापा श्री कृष्ण कुमार यादव से ही-
डाक-टिकट भला किसे नहीं अच्छे लगते. याद कीजिये बचपन के वो दिन, जब अनायास ही लिफाफों से टिकट निकालकर सुरक्षित रख लेते थे. न जाने कितने देशों की रंग-बिरंगी डाक टिकटें, अभी भी कहीं-न-कहीं सुरक्षित हैं. आज जब करोड़ों में डाक-टिकटों की नीलामी होती है तो दुर्लभ डाक टिकटों की ऐतिहासिकता और मोल पता चलता है. आज तो यह सिर्फ शौक ही नहीं, बल्कि व्यवसाय का रूप भी धारण कर चुका है.डाक-टिकटों का संग्रह विश्व की सबसे लोकप्रिय रुचियों में से एक है। इसके द्वारा प्राप्त ज्ञान हमें मनोरंजन के माध्यम से मिलता है, इसलिए यह है शिक्षा का मनोरंजक साधन।
डाक-टिकट संग्रह का शौक हर उम्र के लोगों में रहा है। बचपन में ज्ञान एवं मनोरंजन, वयस्कों में आनंद और तनावमुक्ति तथा बडी उम्र में दिमाग को सक्रियता प्रदान करने वाला इससे रोचक कोई शौक नहीं। 1940-50 तक डाक-टिकटों के शौक ने देश-विदेश के लोगों को मिलाना शुरू कर दिया था। टिकट इकट्ठा करने के लिए लोग पत्र-मित्र बनाते थे, अपने देश के डाक-टिकटों को दूसरे देश के मित्रों को भेजते थे और दूसरे देश के डाक टिकट मंगवाते थे। पत्र-मित्रता के इस शौक से डाक-टिकटों का आदान-प्रदान तो होता ही था, लोग विभिन्न देशों के विषय में अनेक ऐसी नई-नई बातें भी जानते थे, जो किताबों में नहीं लिखी होती थीं।
ब्रिटेन की महिलाओं में अपनी रानी विक्टोरिया के चित्रवाले डाक टिकट इकज्ञ करने का जुनून था। वे ही बनी डाक टिकट संग्रह करने वाले शौक की जननी। महात्मा गांधी दुनिया के अकेले ऐसे शख्स हैं, जिन्हें विश्व के 80 देशों ने अपने डाक टिकट पर जगह दी। अब तक 250 से ज्यादा डाक टिकट बापू के नाम से जारी किए जा चुके हैं। अंतरराष्ट्रीय डाक टिकट प्रदर्शनी-इंडिपेक्स 2011 में पहली बार डाक विभाग ने खादी के कपड़े पर गांधी जी की फोटो छपा विशेष डाक टिकट भी जारी किया .
जानिए डाक-टिकटों से जुडी कुछ रोचक बातें-****************************
ई-मेल और एसएमएस के दौर में डाक टिकटों की जरूरत भले ही कम हो गई हो, लेकिन उनका महत्व नहीं घटा है। डाक टिकट में दर्ज होती है हमारी राष्ट्रीय, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान। पुराने डाक टिकट बन जाते हैं हमारी विरासत, जिनकी बोली लगती है लाखों-करोडों में।
डाक -टिकट का इतिहास तकरीबन 171 साल पुराना है। विश्व का पहला डाक टिकट 1 मई 1840 को ग्रेट ब्रिटेन में जारी किया गया । इंग्लैंड में वर्ष 1840 में डाक-टिकट बेचने की व्यवस्था शुरू की गई। 1840 में ही सबसे पहले जगह-जगह लेटर-बॉक्स भी टांगे जाने लगे।
द पेनी ब्लैकयह ब्रिटेन का डाक टिकट है। दुनिया का ऐसा पहला डाक टिकट, जिसे चिपकाया जा सकता था। यह 1 मई, 1840 को जारी हुआ था। यह अन्य डाक टिकटों की तरह दुर्लभ तो नहीं, पर मूल्यवान जरूर है। जो टिकट अभी इस्तेमाल में नहीं लाया गया, उसकी वर्तमान कीमत है तकरीबन 3 हजार डॉलर।
सिंदे डाक टिकट भारत में पहला डाक-टिकट 1 जुलाई, 1852 को सिंध प्रांत में जारी किया गया, जो केवल उसी प्रांत में उपयोग के लिए सीमित था। ये एशिया के पहले डाक-टिकट तो थे ही, विश्व के पहले गोलाकार डाक टिकट भी थे।
द थ्री स्कीलिंग येलोयह डाक टिकट है स्वीडन का। इसे वर्ष 1855 में छापा गया। नाम के अनुरूप इसका रंग पीला है। आज केवल एक डाक टिकट ही बचा है। इसकी वर्तमान कीमत है तकरीबन 11.6 करोड रुपये।
गुयाना का टिकट
यह है ब्रिटिश उपनिवेश गुयाना का डाक टिकट। इसकी छपाई में काफी घटिया किस्म के कागज का इस्तेमाल हुआ। मैजेंटा रंग पर काले रंग का यह डाक टिकट भी है बेहद दुर्लभ। वर्ष 1980 में जब इसकी नीलामी हुई थी, तब इसकी बोली लगी 9 लाख 35 हजार डॉलर की।
हवाईयन मिशनरीजये हैं हवाई साम्राज्य के पहले डाक टिकट। इनकी छपाई हुई थी वर्ष 1951 में। वह भी काफी पतले कागज पर। इसलिए इनकी गुणवत्ता बेहद खराब है। आज कुछ ही टिकट सुरक्षित बचे हैं। इनमें से एक जो उपयोग में नहीं आ सका था, वह बिका था तकरीबन 7 लाख 60 हजार डॉलर में।
मॉरीशस के डाक टिकटये हैं मॉरीशस के पहले दो डाक टिकट। इनमें से एक डाक टिकट जारी होने के बाद उपयोग में नहीं आ पाया। 1993 में डेविड फेल्डमैन ने इन टिकटों की नीलामी की। इनमें से पहला नारंगी रंग वाला डाक टिकट बिका था तकरीबन 1 लाख 72 हजार 260डॉलर में, वहीं दूसरे टिकट को बेचा गया 1 लाख 48 हजार, 850 डॉलर में।
द इनवर्टेड जेनीयह डाक टिकट अमेरिका का है। गलत ढंग से छपाई होने की वजह से इस टिकट को दुर्लभ के साथ-साथ बेहद मूल्यवान भी माना जाता है। जब-जब भी इसकी नीलामी हुई, तो बोली लाखों डॉलर में लगी। जैसे 2005 के अक्टूबर माह में इसकी ढाई लाख डॉलर की बोली लगी, तो नवंबर 2007 में यह 977 लाख डॉलर से भी ज्यादा में बिका।
अपनी फोटो वाले टिकटअमेरिका और इंग्लैंड में अपनी फोटो डाक टिकट पर छपवाने की लोकप्रिय योजना स्माइली की तरह भारत में भी इंदिपेक्स -2011 के दौरान पहल की गई. इसके तहत महज 10 मिनट में कोई भी व्यक्ति अपनी फोटो डाक टिकट पर छपवा सकता है. शुल्क देना होगा 150 रुपये।
सोने के डाक-टिकटसोने के डाक-टिकट की बात सुनकर बड़ा ताज्जुब होता है। भारतीय डाक विभाग ने 25 स्वर्ण डाक टिकटों का एक संग्रहणीय सेट जारी किया है। इसके लिए राष्ट्रीय फिलेटलिक म्यूजियम (नई दिल्ली) के संकलन से 25 ऐतिहासिक व विशिष्ट डाक टिकट इतिहासकारों व डाक टिकट विशेषज्ञों द्वारा विशेष रूप से भारत की अलौकिक कहानी का वर्णन करने के लिए चुने गए हैं, ताकि भारत की सभ्यता और संस्कृति से जुड़ी धरोहरों की जानकारी दी जा सके और महापुरूषों को सच्ची श्रद्धांजलि।सोने के इन डाक टिकटों को जारी करने के लिए डाक विभाग ने लंदन के हाॅलमार्क ग्रुप को अधिकृत किया है। हाॅलमार्क ग्रुप द्वारा हर चुनी हुई कृति के अनुरूप विश्व प्रसिद्ध कलाकारों द्वारा समान आकार व रूप के मूल टिकट के अनुरूप ही ठोस चांदी में डाक टिकट ढाले गये हैं और उन पर 24 कैरेट सोने की परत चढ़ायी गयी है। ‘‘प्राइड आफ इण्डिया‘‘ नाम से जारी किये गए ये डाक टिकट डायमण्ड कट वाले छिद्र के साथ 2.2 मि0मी0 मोटा है। 25 डाक टिकटों का यह पूरा सेट 1.5 लाख रूपये का है यानि हर डाक टिकट की कीमत 6,000 रूपये है। इन डाक टिकटों के पीछे भारतीय डाक और हाॅलमार्क का लोगो है।
खुशबूदार डाक टिकट भारतीय डाक विभाग ने चंदन, गुलाब और जूही की खुशबू वाले डाक टिकट भी जारी किये हैं. भारतीय इतिहास में पहली बार 13 दिसम्बर 2006 को डाक विभाग ने खुशबूदार डाक टिकट जारी किये। चंदन की खुशबू वाले इस डाक टिकट को तैयार करने के लिए इसमें इंग्लैण्ड से आयातित चंदन की खुशबू वाली एक इंक की परत चढ़ाई गई, जिसकी खुशबू लगभग एक साल तक बरकरार रहेगी। चंदन की खुशबू वाले डाक टिकट के बाद 7 फरवरी 2007 को वसन्त पर्व की मादकता के बीच वैलेन्टाईन डे से कुछ दिन पहले ही डाक विभाग ने गुलाब की खुशबू वाले चार डाक टिकट जारी किये। इसके बाद जूही की खुशबू वाले दो डाक टिकट 26 अप्रैल 2008 को डाक विभाग द्वारा जारी किये गये हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि वर्ष 1840 में ब्रिटेन में विश्व का प्रथम डाक टिकट जारी होने के बाद मात्र चार देशों ने ही खुशबूदार डाक टिकट जारी किए। इनमें स्विटजरलैण्ड, थाईलैण्ड व न्यूजीलैण्ड ने क्रमशः चाॅकलेट, गुलाब व जैस्मीन की खुशबू वाले डाक टिकट जारी किए हैं, तो भूटान ने भी खुशबूदार डाक टिकट जारी किए हैं। अब भारत इस श्रेणी में पाँचवां देश बन गया है, जिसने चंदन की खूशबू वाला विश्व का प्रथम डाक टिकट एवं गुलाब व जूही की खूशबू वाले विश्व के द्वितीय डाक टिकट जारी किये हैं।
-कृष्ण कुमार यादव (डाक-टिकटों के बारे में यदि आपको और भी जानकारियाँ चाहिए तो
'डाकिया डाक लाया' ब्लॉग भी देख सकते हैं)