काशी में हर वर्ष आयोजित होने वाला नाटी इमली का 'भरत मिलाप' जग प्रसिद्ध है। रंगमंचीय दृष्टि से देखें तो नाटीइमली के भरत मिलाप को विश्व की संक्षिप्त नाट्य प्रस्तुति कह सकते हैं। लीला तो दोपहर 2.30 बजे ही शुरू हो जाती है लेकिन मुख्य अंश मात्र पांच मिनट का होता है। नाटी इमली की विश्व प्रसिद्ध भरत मिलाप कुछ ही देर का होता है लेकिन इसको देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। 5 मिनट का यह मिलन लाखों लोगों को आह्लादित कर देता है।
479 वर्षों की परंपरा का निर्वहन करते हुए काशी के नाटी इमली में भरत मिलाप का लक्खा मेला (जिसमें लाखों लोग आते हों) सजा तो भक्तों का हुजूम उमड़ पड़ा। श्रद्धालुओं की बेशुमार भीड़ के बीच राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के मिलन की लीला संपन्न हुई। बारिश के बीच चारों भाइयों का मिलन देख कर श्रद्धालुओं ने जय श्रीसियाराम और हर-हर महादेव का उद्घोष किया।
विश्व प्रसिद्ध भरत मिलाप मेला शाम तीन बजे से प्रारम्भ होता है। अपरान्ह तीन बजे भगवान राम के आगमन का संदेश देने हनुमान जी चित्रकूट धूपचण्डी से अयोध्या बड़ा गणेश रवाना होते हैं। अपरान्ह 3.30 पर भगवान राम, माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ रथ पर सवार होते है। चित्रकूट से इस विशाल रथ को लाल साफा सिर पर और कमर में गमछा बांधे यादव बधुंओं की टोली सियावर रामचन्द्र की जय, हर हर महादेव के गगनभेदी उद्घोष के बीच उठाती है। यादव बन्धु चित्रकूट धूपचंडी से रथ लेकर नाटीइमली मैदान पर आते है। जहाँ, चित्रकूट रामलीला समिति द्वारा आयोजित इस भरत मिलाप की शुरुआत सूर्यास्त के पहले अपरान्ह 4.40 पर होती है। शाम 4:40 बजे मानस मंडली द्वारा भरत मिलाप की चौपाई '...परे भूमि नहिं उठत उठाए, बर करि कृपासिंधु उर लाए...' का गान शुरू होने से पहले ही भगवान श्रीराम और लक्ष्मण पुष्पक विमान से उतर कर जमीन पर दंडवत पड़े भरत और शत्रुघ्न की ओर दौड़ पड़े और उन्हें गले लगाते हैं। मान्यता है कि इस लीला में भगवान राम स्वयं अवतरित होते हैं।
परंपरानुसार काशी राजपरिवार के सदस्य कुंवर अनंत नारायण सिंह भरत मिलाप की लीला देखने के लिए हाथी पर सवार होकर पहुंचे और राजसी परंपरा का निर्वहन करते हुए हर वर्ष की तरह उन्होंने लीला के व्यवस्थापकों को सोने की गिन्नी दी।











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