आज से नए साल का आरंभ हो रहा है. मुझे लगता था की अभी जनवरी में ही तो नया साल मनाया था, फिर यह क्यों? ..फिर मुझे ममा ने इस नए साल यानि नव-संवत्सर के बारे में बताया. मुझे तो सोचकर ही कितना अच्छा लगता है कि इसी दिन भगवान ब्रह्मा ने इस सृष्टि की रचना की, सोचकर कितना रोमांच पैदा होता है. मैंने एक बार टेलीविजन पर सम्राट विक्रमादित्य के बारे में देखा था. ममा ने बताया कि यह विक्रम-संवत उन्हीं के द्वारा बनाया हुआ है.
शक्ति की देवी माँ दुर्गा की आराधना का 'नवरात्र' भी आज से ही प्रारम्भ होता है. पूरे नौ दिनों का हर्षोल्लास. यहाँ तो हमारे घर के सामने ही शानदार मंदिर है, सुबह से ही भजन बज रहे हैं. चारों तरफ ढेर सारी पत्तियां गिरी पड़ी हैं, ममा बता रही थी कि नव संवत्सर में ठंडक के कारण जो जड़-चेतन सभी सुप्तावस्था में पड़े होते हैं, वे सब जाग उठते हैं, गतिमान हो जाते हैं। पत्तियों, पुष्पों को नई ऊर्जा मिलती है। समस्त पेड़-पौधे, पल्लव रंग-विरंगे फूलों के साथ खिल उठते हैं। ऋतुओं के एक पूरे चक्र को संवत्सर कहते हैं।..अब तो मैं बहुत खुश हूँ कि पेड़ों पर भी नई-नई पत्तियाँ दिखेंगीं.
कितना अच्छा लगता है कि हमारे चारों तरफ हर चीज किसी न किसी पर्व और त्यौहार से जुडी हुई है. मैं तो इन्हें पूरा इंजॉय करती हूँ. आप सभी को इस विक्रम संवत के नए वर्ष पर बधाइयाँ और आपका स्नेह और आशीष तो मिलेगा ही !!