नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 120वीं जयंती पर शत-शत नमन। 'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा" का आह्वान करने वाले नेताजी की यह प्रतिमा पोर्टब्लेयर (अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह) में मरीना पार्क में लगी है। कुछ समय के लिये यह द्वीप नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आज़ाद हिन्द फौज के अधीन भी रहा था। नेताजी ने इन द्वीपों का शहीद और स्वराज द्वीप नामकरण किया था।
आज नेताजी की जयंती पर इस बाल कविता का आनंद लीजिये -
वह इस युग का वीर शिवा था,
आज़ादी का मतवाला था।
जन-मन पर शासन था उसका,
दृढ़ तन कोमल मन था उसका।
शासन की मुट्ठी से निकला,
और कभी फिर हाथ ना आया।
शासन के सब यत्न विफ़ल कर,
साफ़ गया वह वीर निकल कर।
वह अफ़गानिस्तान गया था,
जर्मनी औ' जापान गया था।
एकाकी था, सेना लाया,
और विजेता बनकर आया।
काँप उठी थी गोरा-शाही,
नाच उठी चहुँ ओर तबाही।
वह सचमुच का ही नेता था,
रक्त ले आज़ादी देता था।
प्रतिपल ख़तरों ही में रहना,
उसके साहस का क्या कहना।
आशा को थी आशा उस से,
और निराश निराशा उस से।
इम्फल तक वह आ पहुँचा था,
लक्ष्य को सम्मुख देख रहा था।
हा! लकिन दुर्भाग्य हमारा,
छिपा उदय होते ही तारा।
रण का पाँसा पलट गया था,
बिगड़ गया जो काम बना था।
अभी हमें संकट सहना था,
पर-अधीन अभी रहना था।
वाहन लेकर वायुयान का,
और छोड़ कर मोह प्राण का।
चला गया वह समर-भूमि से,
निज भारत की अमर भूमि से।
कौन कहे फिर कहाँ गया वह,
हुआ वहीं का जहाँ गया वह।
@ डॉ. राणा प्रताप सिंह गन्नौरी 'राणा'
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