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रविवार, मार्च 24, 2019

लेखन के साथ अग्रणी ब्लॉगर आकांक्षा यादव : शब्दों में भावों की आकांक्षा

मैं मांस, मज्जा का पिंड नहीं
दुर्गा, लक्ष्मी और भवानी हूँ 
भावों से पुंज से रची
नित्य रचती सृजन कहानी हूँ ...
कॉलेज में प्रवक्ता और फिर साहित्य, लेखन और ब्लॉगिंग के क्षेत्र में प्रवृत्त आकांक्षा यादव बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं। नारी, बाल विमर्श और सामाजिक मुद्दों से सम्बंधित विषयों पर प्रमुखता से लेखन और साहित्य की विभिन्न विधाओं में उनकी रचनाओं का फलक उनके भावों और विचारों के वैविध्य का परिचायक है।  

जीवन में शुरू से ही कुछ अलग करने की ख्वाहिश रखने वाली आकांक्षा यादव ने इसके लिए अपनी कलम को चुना। देश-विदेश की प्रायः अधिकतर प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं और इंटरनेट पर वेब पत्रिकाओं व ब्लॉग पर निरंतर प्रकाशित होने वाली आकांक्षा यादव की विभिन्न विधाओं में अब तक तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं- 'आधी आबादी के सरोकार' (2016), 'चाँद पर पानी' (बाल-गीत संग्रह-2012) एवं 'क्रांति-यज्ञ : 1857-1947 की गाथा' (संपादित, 2007), तो सोशल मीडिया पर एक पुस्तक प्रकाशनाधीन है । 60 से अधिक पुस्तकों/संकलनों  में रचनाएँ प्रकाशित होने के साथ-साथ आकाशवाणी से भी रचनाएँ, वार्ता आदि का  प्रसारण होता रहता है। 

ब्लॉग लेखन में सक्रिय :
स्त्री चेतना, समानता, न्याय और सामाजिक सरोकारों से जुड़ीं आकांक्षा यादव अग्रणी ब्लॉगर भी हैं।  नवम्बर 2008 से हिंदी ब्लॉगिंग में सक्रिय हैं। व्यक्तिगत रूप से ‘शब्द-शिखर’ और युगल रूप में ‘बाल-दुनिया’, ‘सप्तरंगी प्रेम’ व ‘उत्सव के रंग’ ब्लॉगों का संचालन इनके द्वारा किया जाता है। जर्मनी के बॉन शहर में ग्लोबल मीडिया फोरम (2015) के दौरान 'पीपुल्स चॉइस अवॉर्ड' श्रेणी में  इनके ब्लॉग 'शब्द-शिखर' (http://shabdshikhar.blogspot.com) को हिंदी के सबसे लोकप्रिय ब्लॉग के रूप में भी सम्मानित किया जा चुका है। ’’दशक के श्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉगर दंपती’’ सम्मान के अलावा  अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लॉगर सम्मेलन, काठमांडू में ’’परिकल्पना ब्लाग विभूषण’’ सम्मान और  अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, श्री लंका में ’’परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान’’ से सम्मानित हो चुकी  हैं। 

प्रतिभा का सम्मान :
विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक, साहित्यिक संस्थाओं द्वारा विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और सतत् साहित्य सृजनशीलता के लिए आकांक्षा यादव को पचास से अधिक सम्मान और मानद उपाधियाँ प्राप्त हैं। इनमें उ.प्र. के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा ’’अवध सम्मान’’, विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार द्वारा डाक्टरेट (विद्यावाचस्पति) की मानद उपाधि, भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘’डॉ. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान‘‘, ‘‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘‘ व ’’भगवान बुद्ध राष्ट्रीय फेलोशिप अवार्ड’’, साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा, राजस्थान द्वारा ”हिंदी भाषा भूषण”, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ‘‘भारती ज्योति‘‘, ‘‘एस.एम.एस.‘‘ कविता पर प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा पुरस्कार, निराला स्मृति संस्थान, रायबरेली द्वारा ‘‘मनोहरा देवी सम्मान‘‘, मौन तीर्थ सेवा फाउंडेशन, उज्जैन द्वारा "मानसश्री सम्मान", साहित्य भूषण सम्मान, भाषा भारती रत्न, राष्ट्रीय भाषा रत्न सम्मान, साहित्य गौरव सहित तमाम  सम्मान शामिल हैं।

लेखनी से कुप्रथाओं पर चोट :
आकांक्षा यादव की सृजनधर्मिता सिर्फ पन्नों तक सीमित  नहीं है, बल्कि इसने लोगों के जीवन को भी छुआ है। लेखनी से कुप्रथाओं पर चोट के साथ नए विचार भी दिए। बिना लाग-लपेट के सुलभ भाव-भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें, यही इनकी  लेखनी की विशिष्टता है। 

लखनऊ का अहम स्थान :
वह कहती हैं, लखनऊ का मेरी जिंदगी में अहम स्थान है। नवंबर 2004 में शादी के बाद लखनऊ आना हुआ।  पति कृष्ण कुमार यादव लखनऊ में ही डाक विभाग में कार्यरत थे। लिखने-पढ़ने का शौक तो पहले से ही था, पर बात कभी डायरी के पन्नों से आगे नहीं बढ़ी। संयोगवश, पति कृष्ण कुमार अच्छे साहित्यकार भी हैं, ऐसे में जोड़ी अच्छी जमी। लखनऊ तो शुरू से ही साहित्य और संस्कृति का केंद्र रहा है, ऐसे में यहाँ का प्रभाव पड़ना लाजिमी भी था। लखनऊ में रहते हुए ही मेरी आरम्भिक कविताएँ दैनिक जागरण, कादम्बिनी, गृह शोभा इत्यादि में प्रकाशित हुईं और फिर तो ये सिलसिला बढ़ता गया। 

(नन्ही ब्लॉगर अक्षिता (पाखी) की मम्मी श्रीमती आकांक्षा यादव की "कलम और कला" के अंतर्गत प्रतिष्ठित अख़बार 'दैनिक जागरण', 9 मार्च, 2019 में चर्चा) 


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