आज हमने भी हर साल की तरह रक्षाबंधन का त्यौहार अपनी सिस्टर अपूर्वा के साथ सेलिब्रेट किया। हम दोनों ने एक दूसरे को कलाई में सुंदर सी राखी बांधी और फिर ढेर सारी चॉकलेट्स और स्वीट्स भी खाई। मम्मी-पापा का ढेर सारा प्यार भरा आशीर्वाद भी हमें मिला।
आज रक्षाबंधन पर्व को नए परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है। इसे भाई-बहन के संबंधों तक सीमित करके देखना और बहन को अशक्त मानते हुए भाई द्वारा रक्षा जैसी दकियानूसी बातों से जोड़ने का कोई औचित्य नहीं रहा। जो समाज बेटियों-बहनों को माँ की कोख में ही खत्म कर देता है, क्या वाकई वहाँ बहनों की रक्षा का कोई अर्थ है ? आज जिस तरह से समाज में छेड़खानी और महिलाओं के साथ अत्याचार की घटनाएँ बढ़ रही हैं, वह यह सोचने पर विवश करती हैं कि क्या ऐसा करने वालों की अपनी बहनें नहीं हैं। रक्षाबंधन के दिन बहन की रक्षा का संकल्प उठाना और घर से बाहर निकलते ही बेटियों-बहनों को छेड़ना और उनके साथ बद्तमीजी करना .... यह दोहरापन रुकना चाहिए। अन्यथा हर बहन अपने भाई से यही कहेगी कि- "मुझ जैसा कोई रो रहा है। क्योंकि, तुम जैसा कोई उसको छेड़ रहा है। भैया ! क्या तुम ऐसा कर सकते हो कि हर नारी सुरक्षित रहे। क्या हर नारी को सम्मान दे सकते हो ताकि वो बिना भय के खुली हवा में साँस ले सके। तभी सही अर्थों में राखी की शान बढ़ेगी।"