अक्षिता (पाखी) देश की सबसे छोटी हिन्दी ब्लॉगर के रूप में राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से (मात्र चार वर्ष की उम्र में) सम्मानित हो चुकी हैं। दिल्ली के हिन्दी भवन में इंटरनेशनल ब्लॉगर कांफ्रेंस में जब हिस्सा लेने गयीं तो सभी ने उन्हें गोद में उठा लिया। यहां उन्हें आर्ट और ब्लॉगिंग के लिए ‘राष्ट्रीय बाल पुरस्कार' का अवार्ड दिया गया। वह 'हिन्दुस्तान टाइम्स वुमेन अवार्ड' के लिए सबसे कम उम्र में भी नॉमिनेट हो चुकी हैं। अब तो जैसे जहां भी ब्लॉगरों का सम्मेलन होता है तो पाखी को जरूर बुलाया जाता है। जब वह लखनऊ, काठमांडो के अंतरराष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन में आयीं तो आयोजकों के अलावा वहां देश-दुनिया से आये चुनिंदा ब्लॉगरों ने खूब आशीर्वाद दिया। अब पाखी स्वयं अपने ब्लॉग को होल्ड करती हैं। जब कुछ नया रचित होता है तो तत्काल पोस्ट कर देती हैं। अक्षिता (पाखी) बड़ी होकर आईएएस बनकर गरीबों की मदद करना चाहती हैं.
‘मेरा नाम अक्षिता है। मेरा निक नेम पाखी है। पाखी यानी पक्षी या चिड़िया। मैं भी तो एक चिड़िया हूं जो दिन भर इधर-उधर फुदकती रहती हूं। मेरा जन्म 25 मार्च 2007 को कानपुर में हुआ और फिलहाल मैं क्लास दो की स्टूडेंट हूं। ..’ यह है ‘पाखी की दुनिया’ की नन्ही ब्लॉगर अक्षिता यादव उर्फ पाखी के ब्लॉग की चंद लाइनें। पाखी देश की पहली सबसे कम उम्र की हिन्दी ब्लॉगर के रूप में राष्ट्रीय बाल पुरस्कार (2011) विजेता हैं। उन्हें यह पुरस्कार मात्र चार साल की उम्र में महिला और बाल विकास मंत्रालय की तत्कालीन मंत्री कृष्णा तीरथ द्वारा प्रदान किया गया। इसी साल नयी दिल्ली के हिन्दी भवन में आयोजित इंटरनेशनल ब्लॉगर कांफ्रेंस में ‘बेस्ट बेबी ब्लॉगर अवार्ड’ से पाखी को नवाजा गया। हिन्दुस्तान टाइम्स वुमेन अवार्ड (2013) के लिए भी उन्हें नन्ही ब्लॉगर के रूप में अभिनेत्री शबाना आजमी, सांसद डिम्पल यादव और संगीतकार साजिद द्वारा सम्मानित किया गया। लखनऊ में आयोजित द्वितीय अंतरराष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन (2012) में विशेष रूप से सम्मानित किया गया। काठमांडो में आयोजित तृतीय अंतरराष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन में वह सबके आकर्षण का केन्द्र रहीं और वहां के पूर्व मंत्री तथा संविधान सभा के अध्यक्ष अर्जुन नरसिंह केसी ने सम्मानित किया।
अक्षिता (पाखी) का जन्म कानपुर में हुआ। उस वक्त उनके पिता केके यादव पोस्टल सर्विसेज में निदेशक थे। मां आकांक्षा और पापा अपने ब्लॉग में कुछ न कुछ पोस्ट किया करते थे। पाखी ने पूछा कि आप लोग मेरी पेंटिंग्स क्यों नहीं पोस्ट करते! पाखी की बात सबको क्लिक कर गयी। 24 जून 2009 को शुरू हुआ ‘पाखी की दुनिया’ का ब्लॉग। शुरू-शुरू में ड्राइंग को अपलोड किया गया। पाखी का क्रिएशन यहीं तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने अपने किस्से- कहानी गढ़ने शुरू किये जो उन्हीं की भाषा में मां लिखकर पोस्ट कर देतीं। फिर कविताएं और विचार भी पोस्ट होने लगे। पिता ने कैमरा खरीदकर दिया तो पाखी के खींचे बेहतरीन चित्र भी ब्लॉग में जगह पाने लगे। विविधता लिये पाखी का ब्लॉग बेहद पसंद किया जाने लगा। देश की सीमा को लांघकर लगभग सौ देशों में 272 लोग नियमित फालोअर बन गये। जब पाखी की पहुंच फेसबुक तक हुई तो वहां तो लगभग 1000 फालोअर बन गये। गूगल प्लस में भी 240 फालोअर पाखी के ब्लॉग के पक्के पाठक बन गये। पाखी की इसी क्रियेटिविटी और लोकप्रियता से प्रभावित होकर राजस्थान के मशहूर बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा ने अपनी बाल कविता की किताब ‘चूं-चूूं’ पर पाखी का चित्र ही लगा लिया।
पाखी के ब्लॉग में ‘शब्द शिखर’, ‘शब्द सृजन की ओर’, ‘डाकिया डाक लाया’, ‘सप्तरंगी प्रेम’, ‘बाल दुनिया’, ‘उत्सव के रंग’, ‘अपूर्वा’ जैसे उनके पारिवारिक ब्लॉगों के भी लिंक हैं। पाखी के ब्लॉग में बेहद रोचक जानकारियां, पेंटिंग, फोटोग्राफ, कविताएं, संस्मरण, विचार, पत्र, यात्रा वृत्तांत और स्कूल की गतिविधियों के अलावा परिवार में होने वाली छोटी और सच्ची घटनाएं भी निरंतर जगह पा रही हैं। पाखी के कुछ पोस्ट यथा ‘बेटियों को मारो नहीं’, ‘ममा का जन्मदिन आया’, ‘पाखी माने पंछी या चिड़िया’ और अंडमान-निकोबार के 62वें वन महोत्सव पर ‘पाखी का गुलाब’ आदि पोस्ट सचमुच पठनीय हैं। पाखी अब अपनी साम्रगी अपने ब्लॉग (http://pakhi-akshita.blogspot.in/) पर स्वयं अपलोड कर लेती हैं।
अक्षिता (पाखी) की मम्मी आकांक्षा यादव बताती हैं कि पाखी बेहद शरारती हैं लेकिन उससे ज्यादा क्रियेटिव हैं। उन्हें पेंटिंग के अलावा फोटोग्राफी, कम्प्यूटर गेम, डांस और पढ़ना भाता है। वह अपने स्कूल गर्ल्स हाई स्कूल, इलाहाबाद में क्लास दो की स्टूडेंट हैं। शाकाहारी पाखी को पनीर के बने आइटम्स, पनीर पुलाव, पनीर परांठे, पनीर पकौड़े और आइसक्रीम बेहद पसंद हैं। पाखी की एक छोटी बहन अपूर्वा भी हैं जिनके साथ उनकी खूब छनती है। पाखी अंडमान-निकोबार को काफी मिस करती हैं जहां उन्होंने काफी इंज्वॉय किया और अपने ब्लॉग में शेयर भी किया।
अक्षिता (पाखी) के पिता केके यादव बताते हैं कि पाखी जब मात्र दो साल की थीं तभी से मोबाइल, टैबलेट और लैपटॉप से दोस्ती कर ली थी। अगर देखा जाए तो आज बच्चों के खिलौने बदल गये हैं। नये-नये गैजेट्स ही उनके खिलौने बन गये हैं। यह बदलाव अच्छा है। ये बच्चों में क्रियेटिविटी बनाये रखते हैं। आज पाखी अपना ब्लॉग स्वयं हैंडिल करती हैं। नेट द्वारा वह विस्तृत संसार में विचरण कर अपनी जानकारी को बढ़ा रही हैं। पाखी बड़ी होकर आईएएस ऑफिसर बनना चाहती हैं। पाखी को अपनी किताबें फेंकना या बेचना पसंद नहीं है। वह अपनी किताबें, खिलौने और कपड़े जरूरतमंद को देना पसंद करती हैं।
जब अक्षिता (पाखी) की पहुंच फेसबुक में हुई तो वहां तो लगभग 1,000 फॉलोअर बन गये। गूगल प्लस में भी 240 फॉलोअर्स पाखी के ब्लॉग के पक्के पाठक बन गये.
(हिंदी के प्रतिष्ठित अख़बार 'राष्ट्रीय सहारा' के बाल परिशिष्ट 'जेन एक्स' (22 मई, 2014) में अक्षिता (पाखी) के बारे में ''नन्ही ब्लॉगर पाखी की ऊंची उड़ान'' शीर्षक से प्रकाशित फीचर आलेख. इसे आप http://www.rashtriyasahara.com/epapermain.aspx?queryed=15 ऑनलाइन लिंक पर जाकर भी पढ़ सकते हैं। )