
अब मैं बड़ी हो गई हूँ. ममा-पापा के साथ-साथ मैं भी कवितायेँ कहने (मैं कहती हूँ और ममा-पापा उसे पन्नों पर लिखते जाते हैं) लगी हूँ. अभी मेरी एक नन्हीं सी कविता 'फुर्र-फुर्र' चकमक (भोपाल से प्रकाशित बाल विज्ञान पत्रिका) के फरवरी-2012 अंक में प्रकाशित हुई है. पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित यह मेरी पहली कविता है. चलिए, आपको भी अपनी यह नन्हीं सी कविता पढ़ाती हूँ-
गिलहरी चढ़ी
पेड़ के उपर
फिर एक
तोता भी आया
फिर एक
कौआ भी आया
दोनों उड़ गए
फुर्र-फुर्र-फुर्र मस्ती से !
गिलहरी चढ़ी
पेड़ के उपर
फिर एक
तोता भी आया
फिर एक
कौआ भी आया
दोनों उड़ गए
फुर्र-फुर्र-फुर्र मस्ती से !
अक्षिता (पाखी) को बहुत-बहुत बधाई..यूँ ही खूब लिखो और छ्पो.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर...ऐसे ही अच्छी कविताएं लिखती रहो...
जवाब देंहटाएंwww.rajnishonline.blogspot.com
Congratulations Akshita!....You are very lucky!!!...:)
जवाब देंहटाएंThanks a lot Dada ji..sab ap sabka pyar hai.
जवाब देंहटाएं@ Shanti Aunty ji,
Thanks a lot..Jarur.
@ Rajnish Uncle,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद..आप प्रोत्साहित करते रहेंगे, तो जरुर लिखूंगी.
@ Runjhun,
जवाब देंहटाएंThanks a lot..
बहुत ही बढ़िया कविता लिखी है . पाखी बिटिया ने . अति उत्तम
जवाब देंहटाएंपूत के पांव पालने में...हमने भी आपकी यह प्यारी सी कविता चकमक में पढ़ी थी..बहुत सुन्दर लिखा है आपने..बधाई स्वीकारें. .
जवाब देंहटाएंअक्षिता, इस पहली कविता की मिठाई कब मिल रही है..
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत प्यारी कविता।
जवाब देंहटाएंवाह वाह...वाह वाह...वाह वाह!! कविता मस्त मस्त...
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत बधाई पाखी। आगे भी तुम्हारी और रचनाएँ छ्पें हमे ऐसी उम्मीद है।
जवाब देंहटाएंइसे कहते हैं, पूत के पांव पालने में..अक्षिता (पाखी) को असीम बधाइयाँ !
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