शनिवार, जुलाई 28, 2012

पाखी की बिल्ली




पाखी ने बिल्ली पाली.
सौंपी घर की रखवाली.

फिर पाखी बाज़ार गयी.
लाये किताबें नयी-नयी.

तनिक देर जागी बिल्ली.
हुई तबीयत फिर ढिल्ली.

लगी ऊंघने फिर सोयी.
सुख सपनों में थी खोयी.


मिट्ठू ने अवसर पाया.
गेंद उठाकर ले आया.

गेंद नचाना मन भाया.
निज करतब पर इठलाया.


घर में चूहा आया एक.
नहीं इरादे उसके नेक.

चुरा मिठाई खाऊँगा.
ऊधम खूब मचाऊँगा.


आहट सुन बिल्ली जागी.
चूहे के पीछे भागी.

झट चूहे को जा पकड़ा.
भागा चूहा दे झटका.


बिल्ली खीझी, खिसियाई.
मन ही मन में पछताई.

अगर न दिन में सो जाती.
खो अवसर ना पछताती.

******

9 टिप्‍पणियां:

  1. कल 29/07/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. बहुत ही प्यारी कविता है... सलिल दादाजी को थैंक्स और इस कविता को हम सबसे शेयर करने के लिये तुम्हे भी थैंक्स..!!!

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  3. बहुत ही प्यारी कविता..बिल्लीरानी की..

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  4. सुंदर बाल कविता ... वैसे पाखी ने इस कविता से क्या सीखा ?

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  5. अरे वाह, यह बाल-गीत तो सभी को बहुत पसंद आया. आप सभी के प्यारे-प्यारे कमेंट्स के लिए धन्यवाद और प्यार.

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  6. @ संगीता आंटी जी,

    इससे यह सीख मिली कि आलस्य बिलकुल नहीं करना चाहिए, नहीं तो आती हुई चीज भी हाथ से निकल जाती है.

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